जन्मदिन क्या होता है यह मुझे पहली बार पता चला जब मेरे स्कूल में 2 अक्टूबर
को महात्मा गाँधी के जन्मदिन के उपलक्ष में छुट्टी मनाई गयी । मेरी उम्र कोई 7 वर्ष की रही होगी । उसके बाद 14 नवम्बर को नेहरु जी का जन्मदिन, बाल दिवस के रूप
में मनाया गया । उस दिन मैंने पहली बार कठपुतली
का खेल देखा था । सबसे नजदीकी सामना तब हुआ जब मेरे स्कूल के बहुत ही डरावने हेडमास्टर
का जन्मदिन मिठाई बाँट कर मनाया गया । स्वयं हेडमास्टर एक-एक बच्चों को मिठाई बाँट
रहे थे लाइन में खडा करके । मन रोमांच से तब भर आया जब मेरे दोस्त की माँ ने पड़ोस
के सभी हमउम्र बच्चों को बुलाकर तरह-तरह के पकवान खिलाये । मेरे दोस्त का जन्मदिन बसंत पंचमी को मनाया
जाता था ।
उसी दिन मैंने अपनी माँ से पूछा था कि मेरा जन्मदिन कब है । मेरी माँ उस समय
बरामदे में कोयले के चूल्हे के पास बैठी भोजन पका रही थी । मुझे अभी भी याद है ।
माँ की आँखे छलछला आई थीं । उसने मुझे सीने से लगा लिया और बताया कि मेरा जन्मदिन
दो दिन पहले 12 फरवरी को बीत गया था और ये भी कि उस दिन अब्राहम लिंकन का भी जन्म
हुआ था ।
माँ तो माँ ही होती है । उसने उसी दिन, उसी समय मेरा जन्मदिन मनाने की ठान ली
। उसने थोड़ा मैदा लिया । एक ब्रेड का स्लाइस ढूंढ लायी । एक अंडा लिया । चीनी और
दूध की मलाई के साथ सभी को घोंटकर एक अल्युमिनियम के टिफ़िन के डब्बे में सेट कर
दिया । उस डब्बे को बंद कर जहाँ कोयले के चूल्हे की राख गिरती है वहीं रख दिया ।
आधे घंटे में एक स्वादिष्ट केक तैयार हो गया जिसे हम सभी भाई-बहनों ने प्रफुल्लित
मन से शेयर किया । मुझे अभी भी याद है । उस केक को खाने लायक ठंडा होने में 10 मिनट लगे थे जो हमलोगों के लिए १० घंटे से कम नहीं थे । मेरे किसी दूसरे जन्मदिन में, माँ ने इसी तरह पुडिंग बनायी थी , आइस-ट्रे नुमा बर्तन में, बिस्कुट, अंडा, दूध और चीनी घोटकर.
इतने से तो जाहिर हो ही जाता है कि मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार का सदस्य था
जिसमें एक बहुत ही ईमानदार सरकारी मुलाजिम पर तकरीबन 15 लोगों के भरण-पोषण की
जिम्मेवारी थी जिसमे दो सरकारी चपरासी भी शामिल थे । इन्द्रधनुष के तो सात रंग
होते हैं पर हम सभी 15 जन अपना एक अलग ही रंग लिए हुए थे ।
मेरे सबसे बड़े भाई ननिहाल बनारस में पले-बढे. उनका जन्मदिन राजकुमार की भांति मनाया जाता था । मेरे दूसरे बड़े भाई ने अपना जन्मदिन मनाने का एक नायाब तरीका ढूंढ लिया था । वे एक दिन
पहले से ही घोषणा करते रहते थे कि उनका जन्मदिन कल है और उन्हें कल न तो कोई
डांटेगा और न कोई कुछ काम करने को कहेगा । सुबह-सबेरे नहा-धोकर, धुले कपडे पहनकर शायद बड़ों से आशीर्वाद और थोड़ी-बहुत पूजा भी करते थे । मेरे बाद का भाई तो पूरा मस्त मौला था ।
उसे जन्मदिन से कुछ भी लेना-देना नहीं रहता था । न वह किसी को कुछ कहता था और न किसी को उसका जन्मदिन याद रहता था.
उसके बाद की बहन अपना जन्मदिन अवश्य मनाती थी । इसके लिए वह महीनों से कुछ न
कुछ इंतजाम करती रहती थी । परन्तु, 1963 के 27 मई को जब हमलोग केमिस्ट्री की परीक्षा
में शामिल होने के लिए कॉलेज के बरामदे में खड़े थे तभी खबर आई की हमारे प्रधान
मंत्री पंडित नेहरु का स्वर्गवास हो गया था । हमलोग जब घर लौटे तो मालूम हुआ कि आज घर में चूल्हा ही नहीं जला था । बहुत रात को पिताजी ने बच्चों के लिए होटल से
थाली मंगवाई थी । मेरी बहन कुछ नहीं तो तीन वर्षों तक अपना जन्मदिन ठीक से नहीं
मना पायी ।
मेरी दूसरी छोटी बहन का तो पूरा दिन रोते-रोते बीत जाता था । न वह किसी से
बोलती थी और न किसी को उसका जन्म दिन याद आता था । आज शायद उसका जन्मदिन सबसे
धूमधाम से मनाया जाता है ।उसके बाद के मेरे जुडवा भाई-बहन इस मामले में ज्यादा खुशकिस्मत निकले । एक तो
हमलोगों को तबतक जन्मदिन मनाने की तमीज आ गयी और दूसरे घर की माली हालत भी बेहतर
हो गयी थी । बाद में तो सबसे छोटे भाई का जन्मदिन वर्ष का सबसे अच्छा दिन हो जाया
करता था । हम सभी भाई-बहन कुछ-न-कुछ जुगाड़ लगाकर उसे गिफ्ट देते थे.
मेरी नौकरी 6 फरवरी को लगी । 12 फरवरी को मैं एक केक लेकर ऑफिस पहुंचा । लंच-ब्रेक में जब मैंने वह केक निकाला तो इस्पात बनाने वाले कारखाने में चारो तरफ उसकी
बात हुई ।
मेरे बॉस बहुत ही मिलनसार और हंसमुख व्यक्तित्व के थे । उन्हें साथ-साथ खाने-खिलाने और सिनेमा देखने का बेहद शौक था । उस दिन से मैं उनका ब्लू-आइड दोस्त हो गया जब मैंने उन्हें सुझाया कि क्यों न हमलोग सभी का जन्मदिन, पार्टी और सिनेमा देख कर मनाएं । आजतक मुझे अपने सभी करीबी साथियों का जन्मदिन याद है । वैसे मेरे बॉस का जन्मदिन २ अक्टूबर को पड़ता था जो महात्मा गाँधी का भी जन्मदिन था ।
मेरे बॉस बहुत ही मिलनसार और हंसमुख व्यक्तित्व के थे । उन्हें साथ-साथ खाने-खिलाने और सिनेमा देखने का बेहद शौक था । उस दिन से मैं उनका ब्लू-आइड दोस्त हो गया जब मैंने उन्हें सुझाया कि क्यों न हमलोग सभी का जन्मदिन, पार्टी और सिनेमा देख कर मनाएं । आजतक मुझे अपने सभी करीबी साथियों का जन्मदिन याद है । वैसे मेरे बॉस का जन्मदिन २ अक्टूबर को पड़ता था जो महात्मा गाँधी का भी जन्मदिन था ।
शायद कहीं पढ़ा हो या किसी फिल्म में देखा हो, मुझे बचपन से यह चाह रही कि जब
सुबह नींद खुले तो मुझे मेरे बगल में सरप्राइज गिफ्ट दिखाई पड़े और परिवार एकजुट
होकर जन्मदिन की बधाई दे । ऐसा मेरे साथ तो नहीं हुआ बल्कि कितने जन्मदिन बिना याद
किये, बधाई दिए या मनाये बीत गए । मैंने अपनी इस इच्छा को भरपूर असली जामा पहनाया
जब मेरी शादी हुई तबसे अपनी श्रीमती पर और बाद में अपने बच्चों पर । बच्चों को तो
पता भी नहीं चलता था कि उनका बर्थडे गिफ्ट आया भी है या नहीं और अगले दिन उनका
बर्थडे अच्छे से मनाया जाएगा भी कि नहीं । कभी-कभी तो कोई बच्चा बहुत उदासी के साथ
सोता था पर अगली सुबह उसके लिए उसका मनपसंद गिफ्ट सिरहाने सहेजा मिलता था और बाकि
सभी लोगों की हैप्पी बर्थडे की गूँज पर ही नींद खुलती थी ।
आज किसी के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण दिन को मनाने में भी व्यवसायीकरण की पुट
नजर आने लगी है । जैसे, जन्मदिन वीकेंड में मनाना, गिफ्ट्स का मेमोरी कार्ड बनाना
जिससे कि उतनी ही कीमत का गिफ्ट लौटाया जा सके, बर्थडे किसी बड़े रेस्तरां, थीम
पार्क या क्लब में मनाना और अगर दो बच्चों का जन्मदिन बहुत करीब हो तो एक साथ
मनाना । मजे की बात यह है कि ऐसा सबकुछ सभी को बहुत अच्छा और सहज भी लगता है,
जिसका जन्मदिन है उसे भी । अब तो वो मेरे बचपन का दोस्त भी अपना जन्मदिन बसंत
पंचमी को नहीं, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाता है ।
काश, ऐसा टाइम मैनेजमेंट जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंतिम क्षणों के साथ भी हो
पाता । कैसी विडम्बना है ! ऐसी खुशनसीबी भी चुनिन्दा बदनसीबों को ही नसीब होती है
वह भी सबसे ऊपर वाले की मुहर लगने के बाद । उन्हें 24 घंटे पहले उनकी पसंदीदा
धार्मिक पुस्तक दे दी जाती है और अंत में यह भी पूछा जाता है कि उनकी आखिरी इच्छा
क्या है ।
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