मेरी उम्र तीन
वर्ष रही होगी जब पिताजी का तबादला टाटा स्टील के शहर टाटानगर( जमशेदपुर) में हुआ.
टाटा में हमलोग 1952 जून तक रहे. मेरी माँ आस-पड़ोस में बहुत कारणों से लोकप्रिय
थीं. पहला कारण था कि उस जगह अधिकाँश बंगाली परिवार थे जो टाटा स्टील में काम करते
थे और मेरी माँ एक मजिस्ट्रेट की पत्नी थी. दिन के समय हमेशा दो-तीन चपरासी
मुस्तैद रहते थे और पड़ोसियों को छोटे-मोटे बाजार के कामों में और सरकारी कामों में
मदद मिल जाया करती थी. दूसरा कारण था कि माँ एक अच्छी होमीओपैथ दवाईओं की जानकार
थीं. यह विशेषता उन्हें उनके पिताजी से मिली थी जो स्वयं बहुत प्रसिद्ध होमीओपैथ
डाक्टर थे. लोग कहते थे कि माँ के हाथों में जादू था, जिसे दवाई देती थी उसे अवश्य
और अविलम्ब फायदा होता था. तीसरा और सबसे बड़ा कारण था कि मेरे माँ के पास हाथ से
चलने वाली सिंगर सिलाई मशीन थी जिससे वह दूसरों को कपड़े सिलने के लिए सहर्ष दे देती थीं.
उस समय सिलाई मशीन का होना दुर्लभ बात थी जैसे आज BMW गाड़ी होना. माँ बताती थी कि यह मशीन उनके
माँ की थी और याद नहीं कबसे थी.
मशीन को मैंने तब
बहुत गौर से और बहुत देर तक चलते देखा जब मेरी माँ उसपर पिताजी की एक पुराने सफ़ेद
पैंट से मेरे बड़े भाई के लिए फूल पैंट और मेरे लिए हाफ पैंट सिल रही थीं. माँ उस
मशीन पर हफ्ते में एक बार तो जरूर ही सिलाई करती होंगी. मेरे घर में दादा-दादी को
लेकर दस प्राणी थे. 1950 के समय औरतों के कपड़े घर में ही सिले जाते थे, ज्यादातर
हाथ से बिना सिलाई मशीन के.
1960 के आस-पास मेरी दो छोटी बहनें भी सिलाई का सारा काम उसी
मशीन पर किया करती थी. मेरी सबसे छोटी तीसरी बहन तब तीन साल की रही होगी जब वह माँ
के पास वैसे ही बैठ कर सिलाई होते देखती थी जैसे हमलोग उतनी उम्र में. फर्क सिर्फ
इतना था की वह छोटी लड़की माँ को सिलाई में मदद भी कर दिया करती थी, जैसे सूई में
धागा डालना, दूसरी तरफ बैठ कर कपड़े को सीधे आगे बढ़ने में हाथ का सहारा देना, दौड़
कर माँ के लिए पानी लाना इत्यादि. उस दरम्यान एक हादसा भी हुआ था जो भुलाए नहीं
भूलता. मेरी छोटी बहन की छोटी ऊँगली चलती मशीन के सुई के नीचे आ गयी और ऊँगली के
आर-पार हो गयी. पर वाह रे मेरी माँ ! जबतक मेरी बहन कुछ समझती या चिल्लाती, माँ ने
तुरत सुई को मशीन से अलग किया और अपने दांतों से खींच कर ऊँगली से निकाल दिया. बाद
में डेटोल लगाकर ऊँगली को बाँध दिया. कुछ घंटों बाद मेरी बहन भूल भी गयी कि उसे
चोट भी लगी है.
1961 में जब मैं कालेज में पढ़ने लगा तो छोटे-मोटे रफू मैं खुद कर
लेता था. पैजामे की डोरी, पैंट में चोर-पाकेट, यहाँ तक की मैंने अपने पहले फूलपैंट
के पायचें (मोहरी) को भी अपने मन लायक कम कर लिया था.
1976 में मैंने अपनी दूसरी बहन को उसकी शादी में तोहफे के
तौर पर और चीजों के अलावा एक सिलाई मशीन
भी दी थी जो मैंने किश्त में पहले से खरीद कर रखी थी.
१९८० के आस-पास एक
दिन मैंने माँ को सिलाई मशीन से सिलाई करने में परेशान सी दिखी. माँ ने कहा कि
मशीन की बहुत दिनों से सर्विसिंग नहीं हुई थी और उनकी जानकारी में कोई तजुर्बेकार
नहीं दिख रहा है. घर का सभी मरम्मती काम मैं ही किया करता था. इसका भी जिम्मा
मैंने लिया. पर दूसरे दिन माँ को आश्चर्य में डालने के लिए मैंने एक नयी सिलाई
मशीन लाकर दे दी. नौकरी के बाद चूँकि मुझे शिफ्ट ड्यूटी करनी पड़ती थी इसलिए मैं
अपने कारखाने के पास दिए गए क्वार्टर में रहने लगा था.
मेरी शादी हो चुकी
थी. माँ ने मुझे अपनी पुरानी सिंगर मशीन दे दी . कहा कि इसे ठीक कर के तुमलोग
कार्य में लाना. मैं माँ की पुरानी सिंगर मशीन अपने साथ अपने निवास पर ले आया
स्वयं मरम्मत करने के लिए. जब कुछ दिनों बाद माँ मेरे निवास पर आयीं तो मशीन को
ठीक से चलता देख ललचा सी गयीं और कहा कि मैं उनसे मशीन बदल लूं. मैंने माँ को उस
वक्त यह कहकर फुसला दिया कि अगर यह दुबारे खराब चलने लगी तो उन्हें परेशानी होगी.
दरअसल, उस मशीन की आवाज़ से मुझे माँ की कमी नहीं खटकती थी.
यह मशीन आज तक
मेरे साथ है. इसकी देख-भाल मैं ही किया करता हूँ. पर पिछले तीन साल से मेरी तबियत
खराब होने के कारण और ज्यादा समय घर से बाहर अपने नौकरीयाफ्ता बच्चों के साथ रहने
के कारण सिलाई मशीन अनदेखी रह गयी.
कुछ दिन पहले,
मैंने देखा कि चूहों ने मशीन को अपना घर बना लिया था. मैंने उसकी सफाई की,
कल-पुर्जों की किरासन तेल से धुलाई की. मशीन आयल डालने के बाद चलने तो लगी पर
बौबिन कुछ साथ देती नहीं लगी. श्रीमतीजी ने बताया कि उन्होंने बीच में कभी मशीन
चलाने की कोशिश की थी और उन्होंने बाजार से नयी बौबिन भी लाकर लगाया था. पुरानी
बौबिन खोजने पर नहीं मिली.
खैर मैंने खोजबीन
कर एक जानकार मेकनिक से बौबिन बदलवा ली. मेकनिक ने यह भी कहा कि मात्र 1000 (20
USD) रुपये में यह
मशीन पैंट होकर नयी जैसी दिखने लगेगी और 500 ( 10 USD) रुपये खर्च करने पर इसके लिए एक सुन्दर
कैरी बैग भी आ जायेगा.
मुझे ऐसा कुछ करना
अच्छा नहीं लगा. मुझे मेरा कनपटी पर होता सफ़ेद बाल ज्यादा अच्छा लगता है. लोग मेरा
ज्यादा आदर करते हैं.
मैंने इन्टरनेट पर
सिंगर सिलाई मशीन से भी संपर्क साधा था. उन्होंने जो कुछ बताया वह बहुत चौंकाने
वाला था. मेरे दिए गए सीरियल नंबर से यह जानकारी मिली कि यह सिलाई मशीन स्कॉटलैंड
में अप्रैल 1933 में बनी थी और इसका मैनुअल उनके पास उपलब्ध नहीं है.