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Sunday, August 20, 2017

विदेशी तडका - 4 - चेकोस्लोवाकिया के पान कोडल( Mr Kodl of Checkoslovakia !

इंस्ट्रूमेंटल एनालिसिस में विशेष योग्यता के कारण 1970 में मुझे प्रतिष्ठित वैक्यूम स्पेक्ट्रोग्राफ और हाइड्रोजन गैस अनालिजर का कार्यभार सौप दिया गया और साथ ही प्राहा चेकोस्लोवाकिया(Praha, Czechslovakia) से आये विशेषज्ञ पान(श्रीमान) कोडल को मेरे साथ जोड़ दिया गया । श्वेत, छोटे कद के, नीली आँखों वाले 55 वर्षीय कोडल एक सीधे-साधे काम से मतलब रखने वाले पर हंसमुख वैज्ञानिक थे । पर जब कभी कोई उनके पारिवारिक जीवन से सम्बंधित बात करता तो वे उदास हो जाते और उनकी आँखें भींग जाती । उनका तलाक हो चूका था । उनके बेटी चेकोस्लोवाकिया में डॉक्टर थी । बाप-बेटी में बहुत प्यार था । जब भी क्या ,प्रत्येक 15 दिनों पर बेटी का पत्र आता । बाद में पत्राचार में मुझे भी शामिल कर लिया गया । जब कभी गुड मोर्निंग के साथ कोडल मुझे अपने देश की सिगरेट ऑफर करते मै समझ जाता ।
उस समय स्पेशल स्टील को फोर्ज कर विजयंत टैंक के बैरल का निर्माण होता था । स्टील इंगोट की वैक्यूम डीगेसिंग होती थी । उसके बाद स्टील सैंपल में हाइड्रोजन की मात्रा की जाँच होती थी । हाइड्रोजन बबल स्टील इंगोट में ज्यादा रहने पर फोर्जिंग के समय बम की तरह फूट कर इंगोट में बड़ी दरार कर देता था । इसके उपकरण में लगभग 30 किलो मरकरी का व्यवहार कर वैक्यूम पैदा किया जाता था । मरकरी लोहे से दोगुना भारी होने के कारण उसे ताकतवर मोटर पंप से 2 मीटर सीधी खड़ी शीशे की मोटी नली में चढ़ाया-उतारा जाता था ।
एक बार टेस्टिंग के समय मोटर जैम हो गया । पारा और उसमें लिपटी गन्दगी मोटर के भीतरी ओर्फिस में फंस गयी थी । 24 घंटे के अन्दर विश्लेष्ण रिपोर्ट भेजनी होती थी पर कारखाने के इंस्ट्रूमेंट रिपेयर शॉप ने इतनी जल्दी ठीक करने में अपनी असमर्थता जाता दी । कोडल ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, सिगरेट पिलाई और तब तक उनके साथ रिपेयर में हाथ बटाने का आश्वासन लिया जबतक मोटर ठीक नहीं हो जाती और समय पर रिपोर्ट नहीं भेज दी जाती । हमलोगों ने मोटर के एक-एक पुर्जे को खोलकर साफ़ कर , ओइलिंग कर पहले से बेहतर बना दिया । दूसरे दिन सुबह समय पर रिपोर्टिंग कर हमलोग घर और हॉस्टल लौटे ।
उस दिन मैंने कोडल से दो बातें सीखीं, हिम्मत नहीं हारना । दूसरी सबसे अहम् बात यह की किसी भी सामान को रिपेयर में देने के पहले उसे खुद दुरुस्त करने की तबियत रखना ।
यह सीख मेरे जीवन में बहुत काम आयी । घरेलु उपकरणों जैसे सिलाई मशीन, इलेक्ट्रिक गैजेट्स,,छोटी-मोटी प्लम्बिंग, कारपेंटरी और फिटिंग का काम अब रिपेयर पर्सन की बाँट नहीं जोहता ।

कोडल का कार्यकाल दो वर्षों का था । 

विदेशी तड़का -3 - रशियन एक्सपर्ट्स !

१९६६ के अप्रैल माह में हमलोग रांची के हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन के विशाल टाउनशिप में रहने गए । कॉलोनी का उत्तरी-पूर्वी कोना रूस और चेकोस्लोवाकिया से आये लगभग 600 एक्सपर्ट्स को आवंटित
किया गया था । ज्यादातर एक्सपर्ट्स अपनी पत्निओं के साथ आये थे, सीनियर को बच्चे लाने की भी अनुमति थी । उस इलाके को रशियन हॉस्टल कहा जाता था जो अब झारखण्ड प्रदेश का विधान सभा और अतिथि आवास बन चुका है । इस भूभाग में स्विमिंग पूल के साथ सभी तरह के खेल और खेलने के मैदान थे । पूरे क्षेत्र के लिए एक टीवी डिश अन्टेना लगा था जिसकी पकड़ पूरे विश्व से थी । एक बड़ा सभागार भी था जिसमें सांस्कृतिक प्रोग्राम और फिल्मों का प्रदर्शन भी होता था । उस समय वहीँ नेहरु जयंती भी मनाई जाती थी । हमलोग उस सभागार में आमंत्रण पर आयोजन देखने जाते थे । मैंने वहां आवारा, अलीबाबा चालीस चोर और Crime and Punishment फिल्मे देखी थीं । यही सभागार आज का झारखण्ड विधान सभा है ।
ये विदेशी ग्रुप या झुण्ड में अपनी पत्नियों के साथ शाम के समय घूमने निकलते थे । उसी समय बाजार से खरीदारी भी करते थे । दूकानदार भी काम लायक विदेशी भाष बोलने लगे थे उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए । शनिवार और रविवार जैसे साप्ताहिक अवकाश के दिनों ये लोग सुबह से रात होने तक बाजार, सडको, पर्यटक स्थलों पर मस्ती करते दीखते थे । भारतियों से इनका व्यवहार बहुत ही मधुर था । हमेशा मुस्कुराना, जानने की उत्सुकता और दोस्ती बढ़ने के लिए एक्टिंग के साथ आवारा और श्री 420 के गाने गाना इनकी फितरत थी । नजदीकी को अमली जामा पहनाने के लिए अपने कैमरों से फोटो लेना इन्हें बहुत रास आता था । लेकिन तभी एक हादसे के बाद इनमें एक सहमाहट आ गयी, संबंधों में ठंडापन दिखने लगा ।
22 अगस्त 1968 को रांची में भारतवर्ष का बहुत बड़ा दंगा हुआ । सैकड़ों की जाने गयी । हमेशा की तरह अल्पसंख्यकों ने अप्रत्याशित तरीके से शुरुआत करके की । चुकी HEC हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र था इसलिए सीमावर्ती क्षेत्रों में यादवों ने कसकर बदला लिया । ये एक्सपर्ट्स कुछ घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी थे ।
1969 में HEC ज्वाइन करने के कोई छह महीने लगे इन विशेषज्ञों से इतनी जान-पहचान बढाने में की हमलोग अब दिल खोल कर बात करने लगे । एक दिन उन्होंने 1968 के दंगों का अनुभव बताया जो किसी को भी क्षुब्ध और चकित कर देता ।

उन्होंने बताया की पिछली सदी में विश्व में उनके रूस के कुछ इलाकों और जातियों को बारबैरियन (बर्बर, खूंखार और जंगली) कहा जाता था । वे अपने दुश्मन का होशोहवास में खाल छील कर उतार लेते थे । पूरे समय दुश्मन इसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहता था । अगर इसके बाद भी उसकी मौत नहीं होती थी तो उसका गला काट दिया जाता था । पर उनलोगों ने दंगो के शुरूआती दिनों में सुबह की सैर के समय जो कुछ देखा वह उससे भी भयानक था । नाले के अन्दर छुपे परिवार को पहले दंगाई दुलार- पुचकार कर बाहर निकालते थे और उसके बाद छोटे-छोटे चाक़ू से गोंद-गोंद कर मार डालते थे । एक चार वर्ष के बच्चे को तो उन्होंने पैर पकड़ कर घुमाया और दीवार पर दे मारा । एक आदमी को दौडाते-दौड़ाते पानी से लबालब भरे कूएँ में गिर जाने दिया और जब भी उसका सर ऊपर आता उसे लाठी से पीटकर फिर पानी के अन्दर डूब जाने देते । यह खेल 15 मिनट तक चलता रहा ।  हमलोगों के सर पर जब खून चढ़ता है तो सीधे गोली मार देते हैं । इस सदी में भी ऐसा कुछ होता होगा विश्वास नहीं होता । आपलोग तो हिन्दू हो बुद्ध, महावीर , महांत्मा गाँधी के देश के !

1970 के दशक में एक्सपर्ट्स की संख्या कम होती गयी  । 1980 के दशक में आवश्यक तकनीकी क्षेत्रो में ही उन्हें आमंत्रित किया जाता ।