पिछले पांच दिनों से रांची में बारिश हो रही है. मेरे मित्र लक्ष्मी ने बताया कि ग्रेटर नॉएडा में भी गहरे बादल छाये हुए हैं. चूँकि कोरोना संकट काल में घर में ही रहना है इसलिए ज्यादा अकुलाहट नहीं हो रही है. हम दोनों फोन पर बातें कर रहे थे. लक्ष्मी ने कहा कि उसे “बरसात की रात” का शीर्षक गीत बहुत प्रिय है. मैंने बात आगे बढाने के लिए कहा कि “प्यार हुआ इकरार हुआ” भी बरसात में फिल्माया गया अच्छा गाना है. उसने कहा कि “प्यार हुआ...” एक प्रणय गीत है जबकि “जिंदगी भर न भूलेगी वह बरसात की रात “ बरसात को निवेदित है. लक्ष्मी सही कह रहा था.
बचपन से हमलोगों ने न जाने कितनी बरसातें देखी हैं. बचपन में बरसात का मौसम कितने ही नए रोमांच लेकर आता था . बरसात में भींगना, बरसाती नाले में कागज की कश्ती तैराना, गड्ढे में जमा पानी से खिलवाड करना क्या कोई भूल सकता है. कभी-कभी तो कमरे के कोने में सांप भी आकर छिप जाता था. बरसात का मौसम युवाओं का मनपसंद मौसम है. चाहे कॉलेज से भींगते हुए वापिस लौट रहे हों अथवा किसी पेड़ के नीचे बचते खड़े हों, दिल और दिमाग दोनों बरसाती गीत गुनगुनाते रहते थे. सुबह देर से उठना और दोपहर को सोते रहना तो आम बात हुआ करती थी. ख्यालों की दुनिया से बाहर युवा यथार्थ की गुंजाईश रहती तो सोने पे सुहागा. जीवन की दूसरी पारी में भी पहली बरसात और शुरूआती दिनों की बरसात मन मोह लेती है. उसके बाद तो जैसे लंबी खींची हुई गर्मी वैसी ही न खत्म होने वाली ठण्ड और उससे ज्यादा दैनिक कार्यों में अड़चन पैदा करती बरसात सबसे ज्यादा वृद्धों द्वारा कोसी जाती है. जरावस्था की सबसे बड़ी दुश्मन तो बरसात ही है.
हम
तीन सहोदर भाईयों के मध्य उम्र का बहुत कम अन्तर था. बड़े भाई ६ वर्ष के थे. जमशेदपुर
की गर्मी से निजात पाने के लिए हमलोग ज्यादातर बंगले के गेट के पास लगे नल पर ही
मन भर नहाते थे या जोर की भूख लगने तक अथवा जबतक की घर से अंदर से कोई कड़क आवाज
में बुला न ले. एक दिन , देखते-देखते बादल आया और झमाझम बारिश होने लगी.हम भाईयों
ने एक दूसरे को शरारत भरी नजरो से देखा और बाहर सड़क पर नंग-धड़ंग दौड पड़े. ५ मिनट
में ही वर्षा की बड़ी-बड़ी बूंदों से शरीर छलनी हो गया. एक महुए के पेड़ के नीचे शरण
ली. वर्षा कम होने पर किसी तरह घर के अंदर आये . माँ को भौचक देखने का भी समय नहीं
मिला. जल्दी से हमलोगों को चादरों से लपेट दिया गया. शरीर पर पड़े लाल चकत्ते एक
दिन तक बरकरार रहे. उसके बाद बहुत दिनों तक बरसते पानी में निकलने की हिम्मत नहीं
जुटा पाए.
इसी
तरह, पटना के मकान में भी बहुत गर्मी पड़ने के बाद तेज बारिश आई. हम भाई सुबह के
स्कूल से लौटे ही थे. माँ ने कहा था नहा-धो लो भोजन तैयार है. हमलोगों की आँखें
फिर चमकने लगी, शर्ट उतारी और बाहर निकल सड़क पर दौड पड़े. तबतक मोहल्ले के सभी
हमउम्र लड़कों से मित्रता हो गयी थी. जिसने भी देखा हमलोगों के साथ हो लिया.
देखते-देखते १०-१२ बच्चे सड़क पर दौड़ते हुए बरसात का आनंद उठा रहे थे. कुछ दिन पहले
ही बी०एन०कॉलेज का छात्र गोली कांड हुआ था. अभी भी दुसरे शहरों और प्रान्तों से छात्र
जुलुस लेकर स्टेशन से हमारे चौरस्ते होकर गुजरते रहते थे. जो नारे वे लगाते थे वह
हमलोग भी भींगते और दौड़ते लगा रहे थे – जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा
है और जो हमसे टकराएगा चूर-चूर हो जायेगा. लाजिमी था कि हमारी प्रदर्शनी देखने
बड़े-बुजुर्ग भी घर से बाहर निकल आये. लौटने पर मात्र फटकार मिली. शायद बुजुर्गों
के भींगने की चाहत को हमलोगों ने किसी हद तक पूरा किया होगा.
बरसात
के दिनों में भला कौन कॉलेज का छात्र अपने साथ छतरी या रेनकोट रखता है. उस वक्त
बरसते पानी में भींग कर आना-जाना मर्दानगी में चार चाँद लगा देती थी. हमलोग साइकिल
से ५ किलोमीटर दूर कॉलेज जाते थे. कॉलेज के शुरुआती दिनों में ही यूनियन का चुनाव
पड़ा.चुनाव के दिन लौटते समय बहुत जोरों की बारिश होने लगी. हमलोग ६ जन थे जिनका घर
कॉलेज के पश्चिम में पड़ता था. एक का घर १ किलोमीटर दूर तो पांचवें का घर ५
किलोमीटर दूर. कुछ ही दिनों में दोस्ती इतनी दारुण हो गयी थी कि पहला , पांचवे को
घर पहुंचाने के बाद ही अपने घर लौटता था. बारिश इतनी तेज थी कि साइकिल चलाते समय
आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा था .रास्ता भटक गए. शहर से दूर, घर के बिल्कुल विपरीत
दिशा में, बहुत दूर निकल गए. जब समझ में आया तो एक बंद ढाबे में शरण लेकर बारिश
थमने का इन्तजार करने लगे. तबतक शाम होने को आ गयी इसलिए फैसला लिया गया कि सब कोई
वहीँ से अपने-अपने घर चले जाएँ. हमलोगों में मात्र राधे श्याम सर्दी,जुकाम और
बुखार से तीन दिनों तक पीड़ित रहा. बाद में पता लगा कि उसकी साइकिल पंक्चर हो गयी
थी और उसे काफी दूर तक पैदल ही घर लौटना पड़ा था. इसके बाद, कई वर्षीं बाद, कॉलेज
के अंतिम दिनों में एक बार जान-पहचान वालों से दूर पहाड़ी मंदिर गए थे छिपकर सिगरेट
पीने . पहाड़ी की तराई में चट्टान पर बैठकर सिगरेट पीते हुए दोस्त का फरमाईशी गीत
सुन रहे थे. ये फरमाईश उलटी दिशा में होती थी. गीत गाने वाला जिद करके गाने सुनाता
था. गाने वाला सिगरेट के पैसे भरता था इसलिए सुने बिना कोई चारा नहीं था. उस दिन
भी अचानक खूब तेज बारिश आ गयी. मित्र महोदय उस वक्त बरसाती गीत ही गा रहे थे-
“सावन के महीने में एक आग सी लगती है तो पी लेता हूँ “. फिल्म में यह गाना चाहे
किसी भी कारण गया गया हो, हमलोगों का पीने का मतलब सिगरेट से था. अब भला गाने कि
शान रखने के लिए कौन कमबख्त भींगने से डरता. ये बात और थी कि सिर छुपाने के लिए एक
गुलमोहर का पेड़ था नहीं तो दूर-दूर तक कोई भी छिपने कि जगह नहीं थी. हाँ, पहाड़ी की
चोटी पर मंदिर जरूर था पर बिजली की चमक और गरज के विज्ञान से हमलोग बखूबी वाकिफ
थे.
शादी
के बाद युवा जोड़ी स्वयम को सोहनी-महिवाल से कम नहीं समझती है. उस दिन रविवार को
बहुत दिनों बाद बारिश थमी थी. हम पति-पत्नी शहर के विपरीत कोने, अपने बहन-बहनोई से
मिलने स्कूटर पर निकल पड़े. जब बहन का घर मात्र १०० मीटर ही बचा था कि बहुत जोरों की
बारिश आ गयी. दोनों बुरी तरह भींग गए. मुझे तो बहनोई का कुरता पायजामा दुरुस्त आ
गया. बहन थोड़ा ज्यादा तंदरुस्त थी या पत्नी
दुबली थी या फिर उसे मस्ती सूझी , थोड़ी देर बाद जब मेरी नयी-नवेली पत्नी कपडे
बदलकर बैठकखाने में आई तो मैं ठगा सा देखता ही रह गया. मेरी बहन ने अपने स्कूल के
दिनों का स्कर्ट-ब्लाऊज वाला युनिफोर्म पहना दिया था. बहुत देर तक हँसी-मजाक होता
रहा. सब कोई अपने स्कूल के दिन और पहनावे याद कर रहे थे. शाम को जब लौटने लगे तबतक
कपडा नहीं सूखा था. हमलोग उसी पहनावे में स्कूटर में बैठ कर लौट आये. अपार्टमेंट
के बाहर जब स्कूटर स्टैंड पर लगा रहा था तब खिड़कियों से बहुत जोड़ी नजरें हमलोगों
को देख रही थी. हमारा फ्लैट दूसरी मंजिल पर था. दरवाजे पर दो परिवार नजदीक से
जायका लेने इन्तजार कर रहे थे. बनारस की मास्टरनी चाची ने तो चुटकी ले ही ली – “हम
समझे कि आप किसी लड़की को भगा के लाये हैं.”
मेरी
शिफ्ट ड्यूटी हुआ करती थी. बहुत बार बहुत बुरी तरह भींग कर घर लौटते थे. एक बार
रात के दस बजे बहुत तेज बारिश में कारखाने से घर लौट रहा था. बहुत तेज हवा थी. रास्ते
में दोनों तरफ मीलों दूर सिर्फ खेत थे. पश्चिम में मंदिर की तरफ से भयंकर हवा के
साथ बारिश की झटास मुझे और मेरे स्कूटर को धकेले दे रही थी. स्कूटर की हेडलाइट भी
बिल्कुल लाचार थी. किसी तरह टटोलता हुआ आगे बढ़ रहा था घर की तरफ. मैंने मन ही मन
तय किया कि अब ऐसी गलती नहीं करूँगा. पर ऐसी गलती बार-बार होती रही. बहुत वक्त
लगा, धैर्य रखकर बारिश के थमने पर आगे बढ़ने की मनःस्थिति बनाने में.
नौकरी
के अंतिम दिनों में की एक बरसात भुलाने योग्य है भी नहीं. दुर्गा सप्तमी की रात एक
बड़ा हादसा हो गया. तीन दिन से लगातार बारिश हो रही थी. कारखाने के पिछली तरफ जहां कचरा
फेंका जाता था वहीँ एक जहर तालाब भी था. यह नाम गाँव वालों का दिया हुआ था. इस
तालाब में कोयले से निकला फेनोल जैसे कई जहरीले तरल पदार्थ एक पाईप लाइन द्वारा
इसी तालाब में डाल दिया जाता था. इस तालाब में कई मवेशी अपनी जान गवां बैठे थे. एक
बार इसी तरह भारी बारिश के चलते इसका द्रव उफन कर नीचे बसे गाँव और उनके खेत में
जा पहुंचा था. पूरा का पूरा धान का खेत बर्बाद हो गया था. तब तालाब का किनारा ऊंचा
कर दिया गया था. इस बार चूहों ने जगह-जगह सूराख बना दिए थे उसपर बरसात की ऊपरी मार
, एक पतली नाली सी बन गयी थी जो धीरे-धीरे किनारे को तोड़ते हुए बड़ा रूप लेने लगी
थी. रात के ११ बजे महा प्रबंधक मुझे मेरे घर से लिवा ले गए. सुरक्षा के साथ-साथ
प्रदूषण नियंत्रण भी मेरे अधिकार में था. रात भर अग्निशमन के योद्धाओं के साथ बालू
की बोरी पाटते रहे. सुबह सात बजे तक स्राव नियंत्रित कर लिया गया.
अब बरसात की कहानियां सुनने का समय आ गया था. एक होली के दिन भी अचानक ओलों के साथ बरसात हुई. उस शनिवार की रात मैं काली जी के मंदिर के पूजा अर्चना में ध्यानमग्न बैठा था. शनिवार की पूजा में बहुत लोग सम्मलित होते थे. गंभीर पूजा होती है इसलिए शांत वातावरण में पूजा होती थे. अचानक कुछ व्यसक लड़कों की खिलखिलाहट सुनाई दी. पुजारी ने पूजा खत्म होने पर बहुत जोर की फटकार लगाई. उनमें से एक लड़के ने खिलखिलाहट का कारण बताया. होली में भरपूर रंग खेलने के बाद भरी दोपहर में ७-८ लड़के तालाब में रंग छुडाने व् नहाने गए. तालाब बड़ा था और ये लोग बीचोबीच नहा रहे थे. तभी अचानक बड़े-बड़े ओलों की बारिश होने लगी. ये लड़के जब भी पानी से बाहर शरीर निकालते तो कोड़ों की तरह ओले उनका स्वागत करते. शरीर अंदर करते तो दम घुटने लगता. १० मिनट में उनलोगों का हालत खराब हो गयी. किसी तरह किनारे आकर जान बचाई.
आज
३ घंटे से बारिश हो रही थी. शीशे की खिडकी
से सामने पीपल का पेड़ दीखता है. एक एक कर पक्षी पेड़ के पत्तों से बाहर आ रहे हैं.
एक-दो मेरे छत की मुड़ेड पर आकर पंख सुखा रहे हैं. उनकी नजर मेरे दरवाजे पर भी है.
मैं रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करके बिखेर देता हूँ. दूर बैठे कबूतरों का झुण्ड भी जलपान
में शामिल होने आ गया है. कुछ मैना भी पधारी है. एक गिलहरी भी. अब अँधेरा होने तक
काफी के प्याले के साथ बादलों की घेराबंदी, चिडियों का नोकझोक और पेड़ के पत्तों का
इठलाना देखता रहूँगा. जिंदगी के अंतिम पड़ाव में भी सुबह होती है शाम होती है पर
उसे रोचक बनाने में ही बुद्धिमानी है.