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Thursday, March 2, 2017

कालू का जवाब नहीं !



कालू से मेरी पहली मुलाकात तब हुई जब वह दो महीने का रहा होगा । पैर के पंजे और मुंह को छोड़ सारा शरीर काला । मैं काफी दिनों बाद , शायद एक महीने बाद अशोक नगर के अपने पैतृक घर आया था माँ-पिताजी के पास । बाहर बैठक में कालू मेरी बहन के पैर के पास बैठा था । घर में बहुत सारे कुत्ते थे , उस समय 7-8 । कालू उठकर मेरे पैर के पास आकर बैठ गया । बहन बोली यह किसी के पास नहीं बैठता है प्रकाश भैया के पास कैसे प्यार से बैठा हुआ है ।मैंने गौर किया कि कालू में ट्रेन होने के सभी गुण हैं और वह इतने कुत्तों के बीच उपेक्षित और आवारा हो जाएगा.। मेरे बहुत कहने पर भी बहन ने कालू को मुझे पालने के लिए नहीं दिया । उसके बाद जब भी आता कालू दौड़कर मेरे पास आ जाता । मैं उसके लिए बिस्कुट भी लाने लगा ।

एक वर्ष का होते-होते कालू मोहल्ले में ही नहीं दूर-दूर तक काफी मशहूर हो गया । गेट के अन्दर कोई भी बिना एस्कॉर्ट के नहीं आ सकता था । अगर कोई गलती से आ गया तो उसे उसका हमला बर्दाश्त करना होता था । पोस्टमैन,सब्जीवाले, प्लम्बर,ग्वाले बहुत खबरदार रहते थे । बाद में दूध वाले ने तो कालू को दूध पिला कर दोस्ती कर ली । इसके लिए उसने गेट पर ही एक कटोरा रखवा लिया था । अगर कटोरा गुम हो गया और ग्वाला बिना दूध डाले अन्दर आने की कोशिश करता तो कालू भौकता और उसका रास्ता रोकता । बहुतेरे उपाय के बावजूद लोगों से गफलत हो ही जाती थी, ज्यादातर नए-अनजान लोगों से । पांच वर्ष का होते-होते उसने काटने का शतक बना लिया था । सारे दिन उसे चैन से बांध कर रखा जाने लगा । रात को गेट पर ताला लगने के बाद ही उसे खोला जाता । कालू इतना कटखना इसलिए भी हो गया था कि कुत्तों की बहुतायत में वह काफी उपेक्षित हो रहा था । उसका दिल भी शायद अब कुछ भरोसे का आशियाना चाहने लगा था ।

तीन वर्ष बाद, मैं voluntary रिटायरमेंट लेकर पिछवाड़े अपने 3 रूम के यूनिट में रहने आ गया । पहली ही रात अचानक खटपट की आवाज से मेरी नींद खुल गयी । देखा सिरहाने
शीशे की बंद खिड़की के बाहर सिल पर कालू बैठा हुआ है । काली अँधेरी रात, पूरा काला कालू – क्या कॉम्बिनेशन था धड़कन तेज करने के लिए । ऐसा दो-तीन दिन तक हुआ । उसके बाद मैंने खिड़की खोल कालू को अन्दर कर लिया । वह मेरे पलंग के नीचे आराम से लेट गया । मेरे घर में पहले से किट्टू महाशय थे । उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं की । लगता था उसे भी एक निडर दोस्त की तलाश थी । मेरे घर में इनको चेन में नहीं बांधा जाता था और ये बात कालू को मालूम थी ।

जिस दिन घर में उनका मनपसंद मेनू बनता, उनलोगों की ख़ुशी और तमीज देखने लायक होती थी । वे एकदम वैसा ही एक्शन देने लगते थे जैसा घर के बच्चे करते हैं जब उनके पसंद का भोजन बन रहा होता हो । घर के किसी खाली कोने में आपस में खेलना और किसी के आते ही बिलकुल शांत होकर बैठ जाना । जैसे-जैसे खाने का वक्त नजदीक आने लगता उनलोगों की बैचेनी देखने लायक होती । परोसने के बाद अपने बाउल का ही खाना वे लोग खाते थे । कोई लड़ाई-झगडा नहीं ।

बाहर के लोगों के साथ वह जितना निर्दयी था, घर–परिवार के साथ उतना ही प्यारा । मैं जैसे ही घर के बाहर आता वह चिपक जाता । अगर बड़े घर में भाई-बहनों से मिलने जाता तो वह भी साथ-साथ रहता । अगर मैं उसे घर में बंद करके आता तो मौक़ा मिलते ही वह दौड़ के मैं जहां भी रहता वहां आ जाता चाहे वह तिमंजले की छत ही क्यों न हो । मेरे स्कूटर की आवाज वह एक फर्लांग दूर से पहचान लेता और मेरी महक उसे 100 मीटर दूर से मिल जाती ।
उसने दो बड़े ही कामयाम कमांड सेख रखे थे। पहला था "Go home"। वह कहीं भी रहता, कुछ भी करता-रहता ,बस कहने भर की देर थी, वह चुपचाप्प घ के अंदर अपनी जगह पर आ जाता। कितनी बार कालू को जीतती पारी छोडकर लौटना पड़ता था। दूसरा कमांड था "stay"। च्चहे वह खेल रहा होता, झगड़ रहा होता, अथवा हड्डी का टुकड़ा उठाने लपकता रहता, बस कहने भर की देर थे, वह शांत होकर मेरी तरफ देखने लगता।

उसके गले में मछली का बड़ा काँटा फंस गया । बहुत तकलीफ में वह मुंह खोले मेरे पास आया । मैंने मुंह के अन्दर झांककर देखा । काँटा दिख रहा था । मैंने बिजली की चमक के साथ दो उंगली की कैंची बना उसके गले में फंसे कांटे को निकाल दिया । मैं अपने आप को क्या शाबाशी देता उससे ज्यादा कालू उछल-उछल कर मेरा मुंह चूमने की कोशिश करने लगा ।

एक बार बड़े घर के बरामदे में एक काश्मीरी कपडा बेचने आया । मुझे भी बुलाया गया । मैंने एक शाल पसंद की । जब लौटने लगा तो वह काश्मीरी मुझसे हाथ मिलाने आगे बढ़ा । मेरे हाथ तक तो उसका हाथ नहीं पहुंचा पर बेशक उसे कालू ने काट खाया । शायद कालू को लगा हो कि वह अनजान कश्मीरी किसी गलत इरादे से मेरी तरफ बढ़ा था ।

इसके ठीक उलट, एक बार मेरी 3 वर्षीया नतिनी मेरे बिस्तर पर उछल रही थी और वह छलांग लगाकर बिस्तर से कूदी । कूदने की आवाज से तंग आकर ठीक उससे क्षण कालू पलंग के नीचे से बाहर निकला । मेरी नतिनी का पैर कालू के शरीर पर लैंड किया । नतिनी बड़ी जोर से चीखी । कालू को भरपूर चोट लगी थी । पर वह बिना कोई आवाज किये दूसरी तरफ जाकर अपनी चोट सहलाने लगा ।

कालू एक बहुत अच्छा शिकारी बनता ।चूहे, गिरगिट और छिपकली उससे बच नहीं पाते थे । गिरगिट और चूहों के लिए वह उनके आने-जाने के रस्ते पर छिपकर घंटों घात लगाए रहता था । बड़े गर्व से शिकार लाकर मेरे पैरों के पास रख देता । छिपकली का शिकार तो गज़ब तरीके से करता था । घर में मुश्किल से ही कभी कोई छिपकली दिख जाती थी । दीवार पर रेंगती छिपकली को देखते ही वह उसके नजदीक जाकर भौकने लगता था । उसकी कोशिश रहती कि छिपकली भागते-भागते खुले दरवाजे पर आ जाये । उसके बाद पलक झपकते ही वह दरवाजे पर जोर से धक्का देकर छिपकली को गिरा देता था ।

वह खेलने के लिए हरदम तैयार रहता था । अगर उसे बॉल खेलने की इच्छा होती तो मुंह में कोई भी ऑब्जेक्ट पकड़ कर पैर के पास लाकर रख देता । उसके बाद मैं उसे छत पर ले जाकर 10-15 मिनट बॉल खिलाता । नहलाने के बाद अगर उसे गले पर पट्टा बाँधना भूल जाता तो उसे भी वह लाकर पैर के पास रख देता, मानो जैसे वह उसका ID हो ।

एक दिन मैं अपने कंप्यूटर टेबल का टूटा रोलर(Castor wheel) बदल रहा था । आखिरी रोलर लगाने के लिए मैंने जब हाथ बढ़ाया तो वह जमीन पर कहीं नहीं दिखा । मैंने कालू को आवाज दी जिसकी खटपट दूसरे कमरे से आ रही थी । वह दौड़ कर आया । मैंने उसे लगे हुए रोलर की और इशारा कर पूछा । उसके बाद वह मेरे पास से मुड़कर एक दम” मेरा जूता है जापानी” की धुन पर मटकते हुए दूसरे कमरे से रोलर मुंह में दबा कर मेरे पैर के पास रखकर भाग लिया ।

ग्लूकोमा के ऑपरेशन के बाद मैं घर लौटा और बिस्तर पर लेट गया । कार से उतरते ही कालू मेरा मार्गरक्षण करने लगा । बिस्तर के बगल पर सटकर बैठ गया । मेरे भाई-बहन मुझे देखने आये । जैसे ही कोई मेरे ज्यादा नजदीक पहुंचता , कालू गुर्राने लगता । जबतक मेरे आँख पर पट्टी बंधी रही तबतक कालू मेरी निगरानी करता रहता यहाँ तक कि रात को मेरे बिस्तर के बगल में ही रहता । इसके बाद एक-दो बार जब भी कुछ दिन हॉस्पिटल में रहकर लौटता,कालू इसी तरह मेरी देखभाल करता ।

स्वामिभक्ति की एक मिसाल और याद है । गेट के अन्दर एक विशालकाय हाथी को लोग खिला रहे थे । सुबह के समय कालू और उसके दो मित्र मेरे पास छत पर बैठे थे । मैं भी एक दर्जन केला लेकर हाथी की तरफ बढ़ा । तीनो कुत्ते एक साथ भौकते हुए हाथी की तरफ बढे । सबसे छोटा सबसे पहले पहुंचा । उसने हाथी के पैर के पास जोर से ब्रेक लगायी और पत्थर की तरह ठगा सा खड़ा रह गया । सबसे बड़ा आधी दूर से लौट गया । कालू भौकते हुए तब-तक हाथी का चक्कर लगाता रहा जबतक कि तंग आकर महावत उसे हटा नहीं ले गया ।


मैं छ महीने के लिए अपनी बेटी के पास ऑस्ट्रेलिया गया । इन दिनों कालू मेरी बहन के पास रहता । उससे उपेक्षा कतई बर्दाश्त नहीं होती था । जब भी ऐसा कुछ होता वह चुपचाप नजदीक के पार्क में जाकर अकेला बैठ जाता । बहुत मनाने पर वापिस आता । कहते हैं वह withdrawl वाली स्थिति में पहुँच गया था ।उसने काटना तो दूर भौंकना तक छोड़ दिया था । मेरी अनुपस्थिति में सभी को उसका विशेष ख्याल रखना पड़ता था ।

वह 10 वर्ष का हो चूका था । आखिर वह दिन भी नजदीक आ गया जब उसे परलोक जाना था । कुछ दिनों से वह घर के बाहर ही रहना पसंद करता । जब मैं बाहर बैठता तो वह मेरे पास आकर बैठ जाता । उसे हमलोगों ने गेट के पास अशोक के पेड़ के नीचे दफनाया ।