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Thursday, April 18, 2019

हैप्पी बर्थड़े


हमलोग सब अपने जन्मदिन को लेकर इतने भावुक क्यों हो जाते हैं। मैं पढे-लिखे लोगों की बात कर रहा हूँ। जिन लोगों को बुनियादी शिक्षा नहीं मिली है अथवा गाँव-देहात में रहते हैं, उनसे उनके जन्मदिन के बारे में पूछिए तो कोई कहेगा आजादी का दिन मुझे याद है या जब मेरी दादी मरी थी तो मैं 3 का हो गया था और बोलने लगा था वगैरह-वगैरह। मुझे अपना जन्मदिन तब मालूम हुआ था जब दादाजी मेरा नाम लिखाने पड़ोस के स्कूल में ले गए थे। तब मैं 5 वर्ष का था। जन्मदिन मनाया भी जाता है यह तब मालूम हुआ जब माथे पर लाल टीका लगाए मेरा मित्र अपनी कार से उतरा था और हमलोग दौड़ कर उसके पास गए थे। उसकी माँ के कहने पर उसने मिठाई का पाकेट खोल हम सबों  को एक-एक लड्डू दिया था। बसंत के पिता एक अच्छे वकील थे।
बसंत के जन्मदिन के ठीक 6 दिन बाद ही मेरा जन्मदिन पड़ता था। उस दिन मैं तड़के सुबह उठ गया था। स्नान कर गमछा पहने छत पर जाकर सूर्य को जल अर्पित किया था। ऐसा मैं तभी करता था जब कोई आशा पूरी करनी होती थी।  मेरे जन्मदिन के बारे में किसी को याद नहीं था। रोज़मर्रे की तरह स्कूल गया। शाम को खेलने भी गया । रात को माँ चौके में भोजन बनाते वक्त हम सभी बच्चों को बैठाकर होमवर्क कराया करती थी । उस दिन भी होमवर्क करा रही थी। मुझे उदास देख बार-बार पूछती थी की क्या किसी से झगड़ा हुआ है, क्या मास्टर ने डांटा या मारा है , क्या तबीयत ठीक नहीं है ? आखिर में मेरे बड़े भाई ने बताया की उस दिन मेरा जन्मदिन था और उदास इसलिए है की कुछ दिन पहले इसके दोस्त बसंत का जन्मदिन मनते इसने देखा है। माँ ने मुझे पुचकारा। इसके बाद उसने उसी वक्त एक एल्युमिनियम के टिफ़िन के डब्बे में दूध,मैदा, बिसकुट, चीनी और एक अंडा फेंट कर डाला। उस डब्बे को बंद कर माँ ने चूल्हे से नीचे जहां राख़ गिरती है, वहाँ रख दिया। पढ़ाई खत्म होते-होते एक दमदार सवादिष्ट केक तैयार था। बिना कोई हॅप्पी बर्थड़े का कोरस गाये हम सभी भाई-बहन ने केक के टुकड़े का आनंद लिया। उसी रात बिस्तर पर जाने के बाद बड़े भाई ने तय किया की सभी का जन्मदिन मनाया जाएगा। इसके लिए एक महीने पहले से पैसा जमा किया जाएगा। सभी सुबह-सुबह उठने पर हॅप्पी बर्थड़े विश करेंगे। पहले से खरीदा गया गिफ्ट और चॉकलेट भी सुबह ही भेंट करेंगे। चॉकलेट इतना की सभी को कम एक कम एक अवश्य मिले। यह सिलसिला तब छूटा जब किसी की नौकरी हो गई या शादी हो गई और घर से दूर चले गए। तब भी हमलोग एक-दूसरे को पोस्टकार्ड से जन्मदिन की बधाई देना नहीं भूलते थे। तब टेलीफ़ोन बिरले ही किसी के पास होता था। अब तो स्मार्टफोन है, व्हाट्सप्प है, फ़ेसबुक है।
कॉलेज मे मेरे दो मित्र थे। हम तीनों जितना दमखम होता उस हिसाब से जन्मदिन मनाते। आजतक अहले सुबह विश करते हैं। मुझे मालूम हो चुका था की किसी का दिल जितना हो तो उसके जन्मदिन को खास करना सबसे उत्तम है।
MSc की पढ़ाई में हमलोग कुल 18 विद्यार्थी थे। मैंने सबका जन्मदिन रजिस्टर से या पूछ कर जान लिया था । किसी के जन्मदिन के दिन मेरे पास उसे तोहफा देने के लिए अवश्य कुछ न कुछ होता था, ज़्यादातर पेन या कोई किताब जिसकी उसे आवश्यकता हो। कहना न होगा मैं फिसड्डी होते हुए भी बहुत लोकप्रिय हो गया था। बाद में सभी लोग सभी के लिए कुछ न कुछ अवश्य करते थे। एक बार तो हंगामा ही हो गया जब हमलोगों ने मिलकर अपने चहेते प्रोफेसर की क्लास शुरू होने के पहले उनकी टेबल पर बर्थड़े कार्ड से साथ एक कीमती पेन रख दिया। इसके बाद गुस्सैल से गुस्सैल प्रोफेसर हमलोगों के साथ नरमी से पेश आने लगे। अबतक मेरा रुतबा बर्थड़े स्पेशलिस्ट का हो गया था।

हमलोग के फ़िज़िक्स डिपार्टमेंट में एक चपरासी था जगदीश। हमलोगों से उम्र मे कुछ ही बड़ा। हमलोगों के सुख-दुख का साथी। हमलोगों ने मन बनाया की उसका भी बर्थड़े मनाया जाये। उससे उसका जन्मदिन पूछा। वह समझ गया। 1967 में उसका वेतन मात्र 45 रुपये था। सर्दी आ रही थी। हमलोगों ने मिलकर उसे खादी ग्रामोद्योग का एक कंबल, एक चादर, एक पायजाम-कुर्ता और एक सदरी दी। उसके आंखो का आँसू अभी तक नहीं भूलता है।
मेरी नौकरी 6 फ़रवरी 1969 को रांची में भारी इंजीन्यरिंग कारखाने के क्वालिटी लैबोरेटरी से शुरू हुई। यहा रंगरूट की रैगिंग नहीं होती थी अपितु हाथों-हाथ स्वागत किया जाता था। 8 बजे से सामान्य पाली शुरू, 9 बजे साथ मिलकर नाश्ता और चाय और 1 बजे दोपहर को साथ मिलकर सांझा भोजन होता था। मैं चूकी बैचलर था इसलिए मुझसे ज्यादा अपेक्षा नहीं रखी जाती थी । 12 फ़रवरी को नाश्ते के समय 1 पाउंड का केक रखकर मैंने सबको चौकाँ दिया। पूरे लैबोरेटरी में उस दिन इसी बात की चर्चा थी। देखते-देखते 1 महीने के अंदर लगभग 15 लोगों का एक ग्रुप बन गया जिन्होने अपने जन्मदिन का इजहार अपने-अपने तरीके से किया।
कुछ ने स्वतः घोषणा की। कुछ ने अपने प्रोफ़ाइल मुझसे बनवाया। एक ने तो यहाँ तक कह डाला की 14 दिसम्बर को 2 महत्वपूर्ण व्यक्तियों का जन्मदिन पड़ता है – एक राज कपूर का और दूसरे राव का। 10 मार्च की सुबह श्रीकांत उदास बैठा था । उस दिन उसका जन्मदिन था। हमलोग भूल गए थे। हमारे बॉस शर्मा जी का जन्मदिन 2 अक्तूबर को पड़ता था। वे अच्छा गाते ही नहीं थे अपितु मजलिस में गाने की प्रबल इच्छा रहती थी । वे अपना जन्मदिन घर पर 20-25 जन को बुलाकर मनाते थे। मेरा जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता था , किसी पिकनिक स्पॉट पर। अगर बजट बड़ा हो तो सभी योगदान करते थे। इस कड़ी में एक यादगार जन्मदिन समारोह 13 अगस्त 1999 को हमलोगों ने अपने विभागाध्यक्ष श्री श्रीवास्तव का मनाया था - परिवार सहित सिनेमा हाल में फिल्म “ताल” देखने के बाद सबसे उम्दा शाकाहारी होटल कावेरी में डिनर के साथ। ये परिपाटी मेरे अवकाश प्राप्त करने तक चली।
1976 फ़रवरी में मेरी शादी हुई । अक्तूबर माह शुरू होते ही मेरी श्रीमती ने तरह-तरह से मुझे आगाह करना आरंभ किया की उसका जन्मदिन 28 तारीख को है। मेरी लापवरवाही उसे अच्छी नहीं लग रही थी। आखीर 27 की रात वह बहुत मन मसोस कर सो गई। अहले सुबह मैंने उठकर उसे जगाते हुए हॅप्पी बर्थड़े कहा। उसने बहुत धीमे से धन्यवाद दे दूसरी ओर करवट ले ली। उसका मुंह किसी अनजान वस्तु से छू गया। उसने आँख खोल उस अनजान वस्तु को हटना चाहा। यह क्या , एक रंगीन कागज में लिपटा हुआ बड़ा सा बर्थड़े गिफ्ट था। पूरी नींद छूमन्तर हो गई। उसके बाद क्या हुआ होगा बताने की आवश्यकता नहीं बचती है।
इसके बाद का 25 वर्ष हम, हमारी श्रीमती और तीन बच्चों का जन्मदिन मनाने के नायाब तरीकों का खजाना है ।
मेरी उदासीनता से बच्चे बहुत परेशान होते थे। जैसे-जैसे उनका जन्मदिन नजदीक आता जाता था उनकी व्यग्रता देखने और महसूस करने लायक होती थी। बोले तो कैसे बोले बस मेरी नजर को टटोलते रहते । जब कभी मैं बाहर से आ रहा होता तो वे मेरे थैले की मोटाई आंक रहे होते । ज़्यादातर वे लोग 10 दिन पहले से ही इशारे-इशारे में जाहिर कराते की उन्हे क्या चाहिए – जैसे दोस्त के पास एलेक्ट्रोनिक घड़ी है, स्कूल जाने के लिए एक स्पोर्ट्स साइकल होती तो अच्छा होता, आजकल बहुत सुंदर और छोटा ट्रंजिस्टर रेडियो बाजार में दिख रहा है, एक कैरम बोर्ड होता तो सब मिल बैठ कर खेलते, GM का क्रिकेट बैट 500 के अंदर आ जाता है, वगैरह- वगैरह।
मैं भी उनकी इच्छा पूरी करने की भरपूर कोशिश करता लेकिन गिफ्ट के बारे में जन्मदिन की सुबह ही उनका आश्चर्य उनके सिरहाने रखा मिलता। इसके लिए मै अपने लुका-छिपी और आसपास के अनुभव का पूरा प्रयोग करता। सबसे आसान होता की गिफ्ट स्कूटर की डिक्की में ही रहने देता और सुबह 3 बजे उठकर उनके सिरहाने स्टडी टेबल पर रख देता और उन्हे "हॅप्पी बर्थड़े" कहकर जगाता। उठने के बाद, आँख मलते हुए वे पहले मेरी हाथों के तरफ देखते, उसके बाद अपने सिरहाने, उसके बाद टेबल , उसके बाद खुले दरवाजे के बाहर। मेरे लड़के का जन्मदिन अप्रैल मे पड़ता था। हमलोग गर्मी में खिड़कियाँ खोल कर सोते थे। एक बार सभी बच्चों के साथ उनकी माँ भी शामिल हो गई थी तिल्सिम भेदने मे। मैंने क्रिकेट का बैट बाहर खिड़की पर टिका कर रात ही को रख दिया था।
बच्चे देखते-देखते विदेशों में बस गए हैं। ऑनलाइन उपहार का जमाना शुरू हो गया। फ्लिपकार्ट और अमेज़न जैसे दिग्गज आ गए। अब उनका समय आ गया था हम बुजुर्गों को उपहार देने का। केक और फूलों से शुरू होकर अब एलेक्ट्रोनिक प्रोडक्टस की शुरुआत हो गई है। हम पति-पत्नी अभी भी एक दूसरे को जन्मदिन और मैरेज अनिवेरसरी उसी तरह सर्प्राइज़ गिफ्ट देकर मनाते हैं।
आज के दिन हमलोगों के आउट हाउस में रहने वाले बच्चों की संख्या 7 हो गई है। सभी अङ्ग्रेज़ी स्कूल में पढ़ते हैं। सभी को बर्थड़े मनाना आता है।
ये बच्चे भी मुझे 10-15 दिन पहले से इशारा करना शुरू कर देते हैं। यहाँ तक की कैसा गिफ्ट चाहिए। गनीमत है उनकी कीमत 100-300 तक की ही होती है। मुझे अभी भी उनलोगों को बैचेन करने में आनंद आता है। बर्थड़े की सुबह तक उदासीन रहता हूँ। बच्चे भी बहुत होशियार हैं। उन्हे गिफ्ट कभी पेड़ की डाल पर लटकता दिख जाता है, कभी फूलों के गमले में, कभी खिड़की की सीलिड्ग पर तो कभी उनके खेलेने का समान के जंगल में। वे भी मुझे मिठाई, चॉकलेट अथवा केक का टुकड़ा लाकर अवश्य देते हैं।
इस बार 2019 की 12 फ़रवरी को मैं अस्पताल में भर्ती था। शायद यह सबसे यादगार बर्थड़े हो जाए। पहली बार हम पति-पत्नी 24 घंटे एक साथ रहे- मैं मरीज की बेड पर ऑक्सिजन और नेबूलाइसर पर और पत्नी साथ वाले बेंचबेड पर। भरपूर विसीट हो रहा था। हॉस्पिटल स्टाफ पूरा चौकस था। 15 दिन बाद घर लौटने पर मुझे मेरी पत्नी ने बर्थड़े गिफ्ट दिया- एक कलम, एक मग और एक कैडबरी।