Pages

Tuesday, July 30, 2024

पटना कालेजियट स्कूल


पटना कालेजियट स्कूल 2010
1950 के दशक में पटना में दो सरकारी हाई स्कूल हुआ करते थे, पहला पटना हाई स्कूल जो पटना के दक्षिण-पश्चिम कोने पर था और दूसरा पटना कालेजियट स्कूल जो पटना के मध्य में दरियागंज इलाके में स्थित था, मेरे घर से उत्तर-पूर्व में करीब 1 मील दूर. हमलोग तिरछा शोर्ट-कट रास्ता ही लेते थे स्कूल पहुँचने का. लौटते समय का रास्ता मन के मिजाज़, सह्पाठिओं की रुझान अथवा शरीर की थकान या भूख पर निर्भर करता था.
1956 की जुलाई में मेरा दाखिला सातवी कक्षा में हुआ. स्कूल भवन अंग्रेजी के H अक्षर जैसा. मेरी क्लास भवन के बाएं हिस्से पर दुमंजिले पर था. जाते ही सख्त हिदायत दे दी गयी थी कि ठीक नीचे हेडमास्टर का कमरा था इसलिए हल्ला एकदम नहीं करना है. हमलोगों के क्लास टीचर बहुत ही मृदुल स्वभाव के थे. सभी को हाजरी बही में दिए गए क्रमांक के अनुसार बिठा दिया गया. बकायदा तीन लोगों के बैठने लायक बेंच पर अलग-अलग डेस्क जिसमे सामान रखने का कपबर्ड भी था जिसमे ताला लगाया जा सकता था. मुझे बायीं तरफ तीसरी बेंच में बीच में बैठने की जगह मिली. मेरी बायीं तरफ एक महाराष्ट्रियन अनिल राजिमवाले और दाहिनी तरफ सतीश चन्द्र मिश्र बैठते थे. क्लास के अंतराल में अनिल राजिमवाले को मैं हिंदी पढाता था जबकि वह मुझे मराठी सिखाता था. अनिल की आवाज़ बहुत ही मीठी थी और देखने में कुछ-कुछ मेरे जैसे पर नाक-नक्शा कहीं बेहतर. उसे अपनी मातृभाषा पर बड़ा गर्व था. उतनी छोटी उम्र में वह कम्युनिस्म के बारे में बहुत कुछ जानता था. सतीश मैथिल ब्राह्मण था और पढ़ने में बहुत तेज था. मेरे पडोसी और खेल के मैदान के साथी अनिल, बसंत, चंद्रेश्वर, निर्मल, अशोक कुमार प्रसाद, अशोक कुमार सिंह,अमर, सुनील भी मेरे क्लास में थे पर उनको बैठने की जगह अलग-अलग मिली हुई थी.
इंग्लिश के टीचर आद्या सर हुआ करते थे. कहा जाता था की स्कूल में आने से पहले वह आर्मी में थे. उनसे सभी लड़के बहुत डरते थे. मेरे बड़े भाई ने मुझे पहले से सचेत कर रखा था. उनका तकिया कलाम पूरे स्कूल में प्रसिद्ध था,” चट गिरेगा- पट मरेगा”.
एक मिश्रा जी थे बहुत बूढ़े , धोती, लंबा खादी का कुरता और आँखों पर एक पुराना चश्मा. संस्कृत पढ़ाते थे. क्लास वर्क देकर सो जाया करते और हल्ला होने पर ही उठते. उठते ही जिस पर नज़र ठहरती उसपर बेंत की बौछार कर देते. पर कुछ दिन से वे अखिलेश को निशाना बनाने लगे. एक दिन अखिलेश उनके पास बेंत की मार खाने जाने के पहले ही जोर-जोर से रोने लगा. मिश्रा सर ने उसे मारने के बजाय सीने पर उसका सर रखकर उससे बड़ी देर तक बातें की. हमलोग यही समझ रहे थे कि चूँकि ठीक नीचे हेडमास्टर का ऑफिस था इसलिए वे अखिलेश के जोर से रोने की वजह से सहम गए. पर बात दूसरी निकली. अखिलेश के घर पर मधुमक्खी का एक बहुत बड़ा छत्ता मिश्रा सर को ललचाने लगा था.
बहुत याद आती है आर्ट्स-क्राफ्ट्स शिक्षक की. दाये अंग में लकवा, बोल भी नहीं सकते थे.; सभी काम बाये हाथ से करते थे. ब्लैकबोर्ड पर चाख से बड़ी सुन्दर रेखांकन करते थे. तकली से सूत कातना और कारपेंटरी क्लासेस भी वही लेते थे .
भला भट्टाचार्य सर जो हमलोगों को केमिस्ट्री पढाते थे उन्हें कौन भूल सकता है. एक बार स्कूल के छात्रों और शिक्षकों के बीच फुटबाल मैच हुआ. मैच एकतरफा था और छात्र दो गोल से जीत रहे थे . मैच खत्म होने जा रहा था. हमलोग खुश होने के बजाय दुखी थे क्योंकि छात्र खिलाडी तो ऊंची कक्षा के थे जिनसे हमारा लगाव मैच तक ही सीमित था पर शिक्षक बड़े-बूढ़े थे और हमलोगों के दिनचर्या का एक अहम हिस्सा. तभी भट्टाचार्य सर जो धोती पहने रहने के कारण नहीं खेल रहे थे , अचानक फील्ड के अंदर लेफ्ट-आउट की पोसिशन से खेलने आ गए .उन्होंने पांच मिनट के अंदर दो गोल दाग कर  मैच बराबर कर दिया. उसमे दूसरा गोल तो बेकहम जैसा बेंड होकर ३० मीटर की दूरी से दागा गया था. भट्टाचार्य सर को सभी छात्र खिलाडी कंधे पर बिठा कर बहुत दूर तक ले गए. बाद में हमलोगों के गेम टीचर अयोध्या सर ने बताया कि भट्टाचार्य सर मोहन बगान क्लब में थे पर दमे की शिकायत के चलते उन्हें बाल खेलना छोड़ना पड़ा.

तीन साल बाद जब मै झुमरी तिलैया में पढता था और हमलोगों का परीक्षा केन्द्र हजारीबाग का आनंद हाई स्कूल बना तब केमिस्ट्री प्रैक्टिकल में एक्सटर्नल होकर भट्टाचार्य सर ही आये. मै तो समझता था कि उन्हें मेरी कुछ भी याद नहीं होगी. वे सभी से वायिवा-वोइस में खूब प्रश्न पूछ रहे थे. जब मेरी बारी आई तो उनका पहला प्रश्न बहुत धीमी आवाज़ में पूछा गया था ,” क्या तुम पटना कालेजियट स्कूल में पढते थे ?”
अयोध्या सर हमलोगों के गेम टीचर थे. उन्हें स्कूल के मैदान के उत्तर-पूर्व कोने पर रहने को घर मिला हुआ था. उनके घर के सामने सरस्वती पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी. स्कूल में सहभोज होता था- पूरी-सब्जी, दही-बुंदिया और अंत में घर ले जाने के लिए दोना-भर प्रसाद. अगर उस समय किसी दूसरे स्कूल के बच्चे आते तो उन्हें बड़े प्यार से भोज में शामिल किया जाता. एक बार सरस्वती पूजा 12 फरवरी को मनाई गयी थी. उस दिन मेरा जन्म दिन था.
क्लास शुरू होने के पहले फिजिकल ट्रेनिंग के तहत सभी को लाइन से मार्च करते हुए खेल के मैदान में इकट्ठा किया जाता बजाप्ते बैंड-बाजे की धुन पर जो स्कूल के लड़के ही बजाया करते. 20 मिनट के बाद 8-10 लड़कों को हिदायत दी जाती कि वे हेडमास्टर के ऑफिस के बाहर कतार लगा कर खड़े हो जाये. हमलोग उसके बाद लौटते और उन चुने हुए लडको पर बेंत की बरसात देखते अपनी-अपनी क्लास में लौटते. ये दंड पाते बच्चे वो थे जिनकी लिस्ट शिक्षकों की शिकायत पर एक दिन पहले तैयार की गयी होती थी.
स्कूल की दो बातें सबसे निराली और अनुपम थी. पहला यह कि लंच में स्कूल की तरफ से डब्बा मिलता. बकायदे फिर बैंड बजता और मोटे ताज़े हलवाई जैसे रसोईये टिन के बक्से में नाश्ते का डिब्बा लेकर पहुंचते. हमलोग कतार से अपना-अपना डिब्बा लेकर क्लास के दरवाज़े से बाहर निकलते. नाश्ते में कभी कचौरी, कभी बर्फी, कभी गठिया-निमकी और कभी आंटे या सूजी का हलवा होता. नाश्ता हमलोग बरामदे या छत पर जाकर करते. उस समय चीलों की चीखों से माहौल गरमा जाता.हमलोग नाश्ते का कुछ भाग खासकर गठिया-निमकी हवा में जरूर उछालते. चील हाथ तक पहुँच जाते थे झपटने के लिए. उस समय स्कूल का अवकाश-प्राप्त दमे से ग्रस्त चपरासी जिसकी उम्र अवश्य 75 से ऊपर होगी अपने दो पोतों के साथ डब्बा लेकर हाफ्ता हुआ आता. हमलोग उसका डब्बा अपने अंशदानों से भर देते. लंच टाइम का अंत भी बैंड बजा कर होता.
एक दिन केवल वे दोनों लड़के ही आये. हमारे शिक्षक ने कहा कि लड़कों के दादा की सुबह मृत्यु हो गयी थी साथ ही  हमलोगों से जितना बन सके उतनी मदद करने के लिए कहा. बाद में पता चला की दोनों लड़कों को छिटपुट काम के लिए रख लिया गया है और पास के प्राईमरी स्कूल में दाखिल करवा दिया गया है.
दूसरी सबसे अच्छी बात ये थी कि हमारा स्कूल खेल-कूद में अथवा बैंड बजाने में हुनरमंद लड़कों को छात्रवृत्ति के साथ हॉस्टल में मुफ्त रहने-खाने की सुविधा देता. बैंड पार्टी इसी तरह बनी थी. फुटबाल में 18 से 25 वर्षीय जवानों को दाखिला मिला था. ये ज्यादातर पटना के मशहूर फुटबाल टीम से भी खेलते थे जैसे पहाड़ी, बिजली, जगजीवन, मंटू इत्यादि. ऐसा मात्र फुटबॉल के लिए किया गया था. क्रिकेट में जगत नारायण शर्मा, रहमान, पटेल, सुलेमान, भरत जैसे महारथी.
हमारे स्कूल का रिजल्ट सबसे अच्छा होता. खेल में हमारे प्रतिद्वंदी पटना हाई स्कूल, पाटलिपुत्र हाई स्कूल, राममोहन रॉय सेमिनरी, टी के घोष अकादमी और पटना सिटी स्कूल होते. फुटबाल में तो हमसे कोई जीत नहीं पाता पर क्रिकेट में पटना हाई स्कूल अव्वल था. पाटलिपुत्र को शरारती लड़कों का स्कूल माना जाता .वे कभी भी हार को खिलाडी भावना से नहीं लेते .एक बार तो वे लोग मार-पीट पर उतर आये. मुझे याद है तब मैदान से ठीक सटे हुए हमारे हॉस्टल से मसहरी लटकाने के डंडे के साथ लड़कों को आते देख पाटलिपुत्र के लड़के भाग खड़े हुए थे.
जब मै दसवी कक्षा में पहुंचा तभी 1959 की फरवरी में स्कूल क्रिकेट फाईनल मैच खेला गया. मैच मेरे स्कूल और पटना हाई स्कूल के बीच था. तभी मुझे पटना हाई स्कूल देखने का मौका मिला. सभी कुछ हमारे स्कूल से बेहतर लगा खासकर क्रिकेट का मैदान . हरी,मखमली घास और चारों तरफ पेड़ की छाँव. अजय भैया स्टैंड-बाई विकेट कीपर की हैसियत से टीम में शामिल थे. पहली बार काले कोट पहने अम्पायर दिखे. टेन्ट-नुमा पैवेलियन दिखा. मैच एकतरफा था और हाई स्कूल एक पारी और 50 से ज्यादा रन से जीता. पर मैच की खास बात हमारे ओपनर सुलेमान अहमद की बैटिंग थी. पहली पारी में 2 रन और दूसरी पारी में 3 रन लेकिन दोनों परियों में अंत तक आउट नहीं.  अम्पायरों ने भी उनके खेल की भूरी-भूरी प्रशंसा की.
लंच टाइम में सबसे ज्यादा भीड़ बंद गेट पर लगती थी जिसके बाहर खोंचे वाले और दो चाट वाले ठेलागाड़ी लेकर आते. आधे घंटे के लंच टाइम में किसी तरह धक्का-मुक्की करने पर गोलगप्पे, आलूचाट या समोसा-चाट मिलने का नम्बर आता . कभी-कभी चनाचूर वाला भी आ जाता. दाम 1 पैसे से शुरू होकर चार पैसे यानी 1980 के समय का 6 पैसा.
जब मै आठवी क्लास में था, शायद 1958 की ये दुखद बात रही होगी. सभी लड़कों को स्कूल के भवन के बाएं अंदर वाली खाली जगह पर अचानक जमा किया गया. हेडमास्टर ने सूचना दी कि कश्मीर जाने के रस्ते में बस दुर्घटना में जो 16 विद्यार्थियों की मौत हुई थी उनमे तीन लड़के हमारे स्कूल से 1956 में पास होकर गए थे. बस दुर्गम खाई में गिर गयी थी.  छुट्टी हो गयी. लौटते समय रस्ते में साहित्य सम्मलेन भवन के पीछे ही उन मृत लडको का घर पड़ता था और उसी समय किसी एक सतीश नाम के लड़के की लाश पहुंची थी. स्ट्रेचर पर सफ़ेद कपडे के अंदर से दाहिने पैर का अंगूठा भर ही दिखा जो दिल दहलाने के लिए काफी थी.
एक बार ईस्ट पाकिस्तान जो अब बंगलादेश कहलाता है , उसके प्रधान मंत्री सुहरावर्दी ने कुछ भड़कीले भाषण दिए भारत के खिलाफ.पटना कॉलेज ने जुलुस निकाला और हमारे स्कूल भी आये थे स्कूल बंद करवाने. मेरे स्कूली दिनों में , वहाँ राजकुमारी अमृत कौर और उसके बाद प्रसिद्ध गणितज्ञ शकुंतला देवी भी आई थीं.
पटना कालेजियट स्कूल की कुछ बाते बताने लायक हैं. फिल्म कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा हमलोगों के साथ पढता था. तब वह ढीली कोट पहननेवाला एक साधारण लड़का हुआ करता था . उसके बड़े भाई भरत मेरे बड़े भाई की कक्षा में थे, शत्रुघ्न को स्कूल की क्रिकेट टीम में विकेट कीपर बनाने की पुरजोर कोशिश में लगे रहते थे. पर बाकी खिलाडी मेरे बड़े भाई की विकेटकीपिंग पसंद करते थे साथ में वे अच्छे बैट्समैन भी थे. एक दिन जब हमारे भाई कीपिंग कर रहे थे तब थर्डमैन की जगह पर फील्डिंग कर रहा शत्रुघ्न बार-बार मेरे भाई पर फब्तियां कस रहा था. खेल खत्म होते ही अजय भैया उसके पास पहुंचे , उसका एक हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ से उसे फील्ड में नचा-नचा कर 15-20 घूंसे लगाये. सबके छुड़ाने पर शत्रुघ्न रोता-रोता घर लौट गया. उससे शायद ही किसी ने सहानुभूति दिखाई. 
पटना कालेजियट स्कूल 1959
एक बार हमलोग दोपहर ढलने के बाद , स्कूल के पिछवाड़े दक्षिण-पश्चिम कोने में बने रेतीले पिट पर हाई जम्प-लॉन्ग जम्प का अभ्यास कर रहे थे . उसी समय चारदीवारी से सटे एक दुमंजिली छत पर काफी लोगों का जमावड़ा दिखा . वह किसी बंगाली महाशय का घर था. गौर से देखने पर पता लगा कि स्कूल की फोटोग्राफी की जा रही है. हमलोग दुगने जोश से अभ्यास करने लगे जिससे फोटो में हमलोग केंद्रित रहें. बात आई-गयी खत्म हो गयी. 1988 के आस-पास मै टीवी देख रहा था. सत्यजित राय की फिल्म थी . फिल्म की शुरुआत यह कहकर हुई की उस कथा का नायक पटना कालेजियट स्कूल का छात्र था.  अब जाकर मालूम हुआ वह भी इन्टरनेट के जरिये कि सत्यजित राय की ससुराल पटना में ही है और वह फिल्म थी सीमाबद्ध”.
मुझे घर के बॉक्स-रूम से बहुत से कीमती दस्तावेज मिले. एक 1915 का हाथ से लिखा  टेस्टीमोनियल मिला. भाषा और लिखावट संकेत देती थी की लिखने वाला अवश्य ऊंचे ओहदे पर था. यह वह दशक था जब पटना कॉलेजिएट स्कूल के हेडमास्टर अंग्रेज विद्वान हुआ करते थे. यह वही दशक था जब पश्चिम बंगाल के अति प्रसिद्द मुख्यमंत्री श्री विधान चन्द्र रॉय (Bidhan passed Matric examination from Patna Collegiate School in 1897.) इसी स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे. वह समय कितना अद्भुद रहा होगा जब जन नायक जय प्रकाश नारायण भी विद्यार्थी थे(When Narayan was 9 years old, he left his village to enroll in 7th class of the collegiate school at Patna) .  यह टेस्टीमोनियल का मसौदा उनके लिए था जो 1880 से 1915 तक स्कूल को शिक्षक की हसियत से योगदान देने के बाद अवकाश प्राप्त कर रहे थे , क्या अजीब और सुखद सयोंग था. वे और कोई नहीं मेरे परबाबा बाबू रामधनी सिंह, BA, BEd थे.
इस टेस्टीमोनियल को मैंने जैमिनी AI से ट्रांसक्रिप्ट कराया जो इस प्रकार है :-
I have great pleasure of expressing a very high opinion about the ability, intelligence and character of Babu Ram Dhani Singh. I have been known to him for a long time.
After successfully passing the final Mastership Examination of the Department of Education, he rendered himself for distinction as Headmaster of several schools where his worthiness is remembered with deep appreciation. Later on, he served as Assistant Master at Patna Collegiate School (now new college). Whence he retired after completing his career of a long and meritorious service extending over a period of 35 years. He has lived a temperate & wholesome life that even now after retirement; he retains all the faculties in full vigour
possesses an excellent health & energy.
He is an ideal of a simple & devoted life devoted to the pursuit of good and beneficent deeds. He knows the Hindu Ayurveda system of medicine efficiently. He possesses also all the qualities & knowledge of a successful businessman - vigilant, competent and accurate in his dealings.

तब पटना कालेजियट स्कूल बादामी रंग से सँवरा हुआ करता था. आज वह लाल किनारों वाले सफ़ेद आवरण ओढ़े उसी शान से खडा है.



 

1 comment:

  1. My school, from where I passed out as matriculate in 1973!
    What a memory, Shatrughna Sinha got bashed up!

    ReplyDelete