ये वाकया जनवरी 1973 का है जब मैं हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन में प्रमोशन पाने के लिए पूरी तरह प्राइमड था. हमलोग नॉन-प्रोडक्शन स्ट्रीम में केमिस्ट थे. उस समय, शायद आज भी कारखानों की पालिसी रही है इंजीनियरिंग डिग्री होल्डर्स को प्राथिमकता देने की. हमलोग प्योर साइंस में पोस्ट-ग्रेजुएट थे फिर भी हमलोगों को द्वितीय श्रेणी में रखा जाता था. यही हमलोगों के अनरेस्ट के मुख्य कारण था. मैनेजमेंट से किसी प्रकार की सहानभूति नहीं मिल रही थी. यहाँ तक कि हमारे रिसर्च एवं डेवलपमेंट के प्रमुख हमारे कार्य-कौशल और क्षमता से बेहद प्रसन्न रहने के बावजूद, एनुअल रेटिंग में 4-5 स्टार देने के बावजूद, प्रमोशन में साम्यता के मामले में चुप्पी साध लेते थे. कभी-कभी बौखलाहट में बेवजह की फटकार भी लगा देते थे. वे भी इंजीनियरिंग डिग्री होल्डर थे.
एक दिन हमारे एक्सप्रेस लेबोरेटरी में चेयरमैन का औचक निरीक्षण हुआ. यह लेबोरेटरी स्टील मेल्टिंग फर्नेस में तैयार हो रहे गले इस्पात की समय-समय पर गुणवत्ता की जांच-परख करती है. उस दिन वाकई लेबोरेटरी साफ़-सुथरी नही थी.चेयरमैन ने तो मौके पर कुछ नही कहा पर वे नाखुश अवश्य दिख रहे थे. चेयरमैन के जाने की बाद हमलोगों को सभी वरीय अधिकारिओं से बहुत सुनना पडा. दूसरे दिन मैं कुछ केमिकल इशू करवा कर सीढ़ी से दो-मंजिले पर स्थित एक्सप्रेस लेबोरेटरी लौट रहा था. तभी सीढ़ी उतरते प्रमुख और कुछ और लोगो के खिलखिलाहट की आवाज सुनाये दी. प्रमुख कह रहे थे कि अगर इन्हें डांट-फटकार कर नहीं रखा जाए तो ये लोग सर पर चढ़ जाते हैं वगैरह.जब मैं दाखिल हुआ तो मेरे मातहत बताने लगे कि प्रमुख बहुत क्रोधित थे. उन्होंने चेयरमैन के निरीक्षण के समय उपस्थित सभी कर्मचारियों का ब्यौरा लिया है शायद दण्डित करने के लिए.
हमलोगों ने रोजमर्रा के कार्य में कार्यशाला के रख-रखाव और सफाई पर भी विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. प्रमुख की पास प्रमोशन की बात लेकर जाना तो सपना हो गया. प्रमुख तो वैसे भी कभी-कभार आते थे. जबसे प्रमोशन की लहर चली तबसे तो आना ही छोड़ दिया था.
अप्रैल माह की गर्मी में, सुबह की पारी ख़त्म कर, थक कर चूर, घर लौट, भोजन कर मैं सो रहा था. तभी कॉल बेल जोर से बजने लगी. मैं आंख मलते उठा. दरवाजा खोला. मेरे सहयोगी भरभरा कर मुझसे लिपट गए जैसा वर्ल्ड कप जीतने पर होता है. हमलोग सभी का इंजीनियरिंग कैडर के साथ प्रमोशन हो गया था.
आज जब अच्छे दिन के आने की हमलोग व्याकुलता से प्रतीक्षा कर रहे होते है तो उन अच्छे दिनों की भी याद बरबस आ जाती है जब लोग सपना नहीं दिखाते थे. उनकी फटकार, बौखलाहट और खिलखिलाहट में उनकी बेबसी निहित रहती थी पर नेपथ्य में अच्छे दिन लाने का सच्चा स्नेहिल संकल्प होता था.
एक दिन हमारे एक्सप्रेस लेबोरेटरी में चेयरमैन का औचक निरीक्षण हुआ. यह लेबोरेटरी स्टील मेल्टिंग फर्नेस में तैयार हो रहे गले इस्पात की समय-समय पर गुणवत्ता की जांच-परख करती है. उस दिन वाकई लेबोरेटरी साफ़-सुथरी नही थी.चेयरमैन ने तो मौके पर कुछ नही कहा पर वे नाखुश अवश्य दिख रहे थे. चेयरमैन के जाने की बाद हमलोगों को सभी वरीय अधिकारिओं से बहुत सुनना पडा. दूसरे दिन मैं कुछ केमिकल इशू करवा कर सीढ़ी से दो-मंजिले पर स्थित एक्सप्रेस लेबोरेटरी लौट रहा था. तभी सीढ़ी उतरते प्रमुख और कुछ और लोगो के खिलखिलाहट की आवाज सुनाये दी. प्रमुख कह रहे थे कि अगर इन्हें डांट-फटकार कर नहीं रखा जाए तो ये लोग सर पर चढ़ जाते हैं वगैरह.जब मैं दाखिल हुआ तो मेरे मातहत बताने लगे कि प्रमुख बहुत क्रोधित थे. उन्होंने चेयरमैन के निरीक्षण के समय उपस्थित सभी कर्मचारियों का ब्यौरा लिया है शायद दण्डित करने के लिए.
हमलोगों ने रोजमर्रा के कार्य में कार्यशाला के रख-रखाव और सफाई पर भी विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. प्रमुख की पास प्रमोशन की बात लेकर जाना तो सपना हो गया. प्रमुख तो वैसे भी कभी-कभार आते थे. जबसे प्रमोशन की लहर चली तबसे तो आना ही छोड़ दिया था.
आज जब अच्छे दिन के आने की हमलोग व्याकुलता से प्रतीक्षा कर रहे होते है तो उन अच्छे दिनों की भी याद बरबस आ जाती है जब लोग सपना नहीं दिखाते थे. उनकी फटकार, बौखलाहट और खिलखिलाहट में उनकी बेबसी निहित रहती थी पर नेपथ्य में अच्छे दिन लाने का सच्चा स्नेहिल संकल्प होता था.
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