मुग़ल और अंग्रेजों के शासन
में ज्यादातर बातें ऐसी हैं जो घिनौनेपन तक दुखदायी है- जैसे हिंसा द्वारा मंदिर
विध्वंस, नारी-हरण, धर्मान्तरण और गुलामी प्रथा । इन सबों के बारे में बहुत कुछ सुना और
पढ़ा है । पर यह भी नहीं भूलना चाहिए की इनकी वजह से हमलोग आपस में लड़ने-कटने से
काफी हद तक बचे रहे वैसे ही जैसे दो बिल्लियों के सुलहनामे में बंदर तराजूवाला
पूरा माल खा गया पर बिल्लियों में संधि हो गयी । साथ ही कुछ बातें ऐसी हैं जिसे हम
गहराई से मनन करें तो पायेंगे की भारतवर्ष ने उनकी बहुत सी अच्छी बातों को बखूबी
अपना लिया है ।
विदेशियों से मेरा लंबा
सानिध्य रांची आने पर हुआ । आज़ादी के बाद ये सभी विदेशी ईश्वर के प्रतिनिधि बनकर
आये अथवा इंजीनियरिंग एक्सपर्ट्स बनकर । सभी से मैंने बहुत-कुछ सीखा और समान धरातल
पर उठ-बैठ की ।
मैं पांच वर्ष का था जब
पिताजी सपरिवार जमशेदपुर से तबादला लेकर ट्रेन से पटना जा रहे थे । 1952 में
रेलगाड़िया न तो समय पर आती थी और न समय पर पहुँचती थीं । साथ ही काफी अरसे बाद या
नए सफ़र करने वाले या ज्यादा बैगेज होने के कारण,सफ़र करने
वाले भी समय से काफी पहले स्टेशन आ जाया करते थे । मालूम नहीं कहीं जल्दी आकर
जल्दी न चली जाए । तबादले के कारण सामान ज्यादा था जिसे लगेज-वैन में डालना था इस
कारण हमलोग भी चार-पांच घंटे पहले तडके सुबह स्टेशन पहुँच गए थे ।
माँ ने
हमलोगों को जबरन सोते से उठाकर फ्रेश कराया और एक-एक कर नंगा गुनगुने पानी से भरे
बाथ-टब में भरपूर नहाने दिया । ये सब वाकया फर्स्ट क्लास वेटिंग रूम में बैठी माँ
के उम्र की एक विदेशी महिला देख कर आनन्द ले रही थी । सुबह यूनिफार्म पहने लाल
पगड़ी वाले बैरे ने टी-पॉट,मिल्क-पॉट और सुगर क्यूब से सजी ट्रे लाकर रख दी-साथ में ब्रेड-बटर
का टोस्ट और हम बच्चों के लिए दूध से भरा पॉट भी । वह अँगरेज़ महिला और माँ
अंग्रेजी भाषा में अपने अनुभवों का आदान-प्रदान कर रहे थे । उस महिला ने हम बच्चों
को टोस्ट बनाना और पॉट हैंडल करना सिखाया । उसने अपने पास से नाश्ते में एक केक भी
जोड़ दिया । माँ ने भी घर का बना ठेकुआ(कुकी) उन्हें खिलाया जो उसे बहुत स्वादिष्ट
लगा । माँ ने उसे 5-6 ठेकुए और एक माथे की बिंदी का पैक दिया ।बदले में उसने भी एक
फेस क्रीम की बोतल दी जिसे माँ बहुत दिनों तक सहेज कर रखती थी । उसे
कलकत्ता जाना था । ट्रेन 9 बजे सुबह आयी
थी । इतने कम समय में हमलोगों ने काफी सारे अंग्रेजी शब्द और मुहावरे सीख लिए थे ।
OMG
तो हमलोग बात-बात पर बोलने
लगे थे । जब उस विदेशी महिला की ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर लगी थी तो हमलोग एकटक
ट्रेन को ही निहार रहे थे । उतने कम अंतराल के मिलन के बाद की विदाई में भी दोनों
महिलायों के पलके भींग गयी थीं इतना मैंने
अवश्य देखा था । हमलोगों की ट्रेन 1 बजे दोपहर को प्लेटफार्म पर लगी थी । इंजन
ड्राईवर अँगरेज़ या एंग्लो इंडियन रहा होगा । जहां हमलोगों की बोगी लगी थी वहां
प्लेटफार्म नहीं था और न तो उसमें फर्स्ट क्लास का डिब्बा था । हम बच्चों को गोद
में उठाकर बोगी के अन्दर किया गया था ।
क्रमशः .......
No comments:
Post a Comment