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Thursday, May 17, 2012

रेडियो


हरेक माँ-बाप के लिए उनके बच्चे जीनियस पैदा होते है. मेरे से ठीक बड़े भाई बाबा के आँखों के तारे थे. उन्हें विश्वास था की अजय भैया में वे सभी गुण मौजूद थे जो उन्हें एक आई०ए० एस बना सकते थे . और अंततः वैसा कुछ हुआ भी . वे भाई को छत के कोने में छिपा कर पढाते थे और अपने साथ कभी-कभी जलेबी खिलाने बाज़ार ले जाते थे. इस कारण, दादी का दुलरुआ मैं होता जा रहा था. दादी हम सभी को अमर चित्र कथा और राम चरित की मदद से हिंदी पढाती थी. माँ हमलोगों के होमवर्क में मदद करती थी. बाबा का देहांत जनवरी १९५४ में हो गया. इसके बाद इंग्लिश पढाने की जिम्मेदारी पिताजी ने सम्हाल ली. पिताजी “ Spare the rod- spoil the child” पर पूरा विश्वास करते थे.
उसी वर्ष मेरे घर रेडियो का आगमन हुआ. उस समय किसी-किसी घर में ही रेडियो हुआ करता था. His master’s Voice (HMV) का रेडियो सबसे अच्छा माना जाता था. आकाश से रेडियो तरंगे ठीक-ठीक पकड़ने के लिए छत पर १५ फीट ऊँचे बांस के सहारे ३० फीट लंबा एरिअल लगाया गया. और अर्थिंग ! मिटटी के कुल्हड़ में भींगी मिटटी भरकर उसमे अर्थिंग का तार खोसा गया. किसी को क्या मालूम था कि एक ईमानदार मजिस्ट्रेट पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए क्या-क्या कर सकता है ?
अगले दिन सुबह और उसके बाद हर सुबह पिताजी ऊँचे रखे रेडियो के नीचे फर्श पर शेव करने का सामान फैला कर शेव करते थे. उनसे बाईं तरफ दो कदम के फासले पर अजय भैया और मैं बैठते थे. ठीक सुबह आठ बजने के कुछ पल पहले  १० बार पुक-पुक की आवाज़ आती थी. उसके बाद एक रोबदार आवाज़ आती थी, “ This is All India Radio. Here is the news in English read by Melville de-Mellow.”  कभी-कभी सुरजीत सेन भी समाचार पढते.
समाचार खत्म होने के बाद हमलोगों की ताजपोशी शुरू होती थी. पहला सवाल अजय भैया से होता था. समाचार में नेहरु जी के बारे में क्या बोला गया. दूसरा सवाल मुझसे होता था. पंचशील समझौते पर चीन ने क्या कहा. ऐसे ही समाचार से सम्बंधित दो-तीन सवाल जवाब होते थे जिसमे साहित्य और व्याकरण का समिश्रण भी रहता था. पिताजी को आफिस जाने की जल्दी होती थी इसलिए वे छड़ी लेकर ही बैठते थी. जरा सी गलती और दो-तीन दायें-बाएं सपाटा मिलना आम बात थी. उसके बाद हमलोग भी स्कूल जाने की तैयारी में लग जाते. जब कभी पिताजी समाचार सुने बिना जल्दी आफिस जाते तब तो हमलोगों की शामत ही आ जाती थी. समाचार सुनो, एक पन्ने का सारांश लिखो और शाम को चेक कराओ. हम बच्चे His master’s Voice का मतलब समझने लगे थे.
रेडियो दादी के कमरे में रखा गया था. दादी हर रोज सुबह सात बजे से २-३ मिनट पहले रेडियो आन करतीं. सबसे पहले All India Radio (AIR) का सिग्नल बजता . सुबह की शुरुआत भजन से आरम्भ होती . भजन में ठुमक चलत रामचंद्र और सुर की गति मैं क्या जानूउनके प्रिय थे. दोपहर में जब हमलोग स्कूल से लौटते तब फ़िल्मी गानों के साथ दादी झपकी लेते हुए मिलती. हिंदी गानों में उस समय नागिन फिल्म का मन डोलेबहुत सुना जाता था.
शाम को सप्ताह के किसी दिन लोहा सिंह का नाटक आता जिसे हम सभी बड़े चाव से सुनते. यहाँ तक की घर के काम के लिए तैनात दो चपरासी भी दरवाजे के बाहर बैठ जाते. उतना लोकप्रिय कार्यक्रम 90 के दशक में टीवी पर रामायण का प्रसारण ही था. रेडियो से आते कुछ गानों को मेरा छोटा भाई अभय बहुत मगन होकर सुनता था . उसकी उम्र तब तीन साल रही होगी . रेडियो आन करने के क्रम में उसके ऊपर बक्सा ही गिर गया . उसका दाया हाथ काफी दिनों तक सूजा रहा.
मेरी माँ साहित्यरत्न थीं. उनके लेख, कवितायेँ, कहानियाँ और नाटक अख़बारों में छपा करते. इससे एक तो माँ को अपनी प्रतिभा कायम रखने में सहायता मिलती दूसरे जो पारिश्रमिक मिलता उससे घर चलाने में काफी मदद हो जाती. एक मजिस्ट्रेट को 50 के दशक में 300 रुपये मिलते रहे होंगे. उसपर आठ बड़े हो रहे बच्चों का लालन-पोषण . मेरे पिताजी को माँ की ये बातें बिलकुल अच्छी नहीं लगती थी. ऐसा शायद इसलिए कि कहानियों में घर की अंतरंग बातें अनजाने में अपना रंग दिखा जाती थीं. जैसे मेरी छोटी बहन ने किसी हमउम्र को लाल जूती पहने देखा था. इसे माँ ने लिली के जूतेमें बड़े ही मार्मिक तरीके से लिखा था. पिताजी को अपनी बेबसी पर ये घाव पर नमक छिड़कने जैसा लगता.
उसी समय किसी ने माँ को बताया की इस तरह कहानियों और नाटक का रेडियो बहुत अच्छा पारिश्रमिक देती है. माँ की रचनाएँ रेडियो पर तुरत स्वीकार ली गयीं बल्कि माँ को ज्यादा से ज्यादा रचनाएँ देने को कहा गया. ये बातें पिताजी से छिपा कर होती थीं. अतः, रेडियो पर इनका प्रसारण सुनना असंभव सा था. प्रसारण रात के सात-आठ बजे आता था.
पिताजी ज्यादातर उस समय घूमने या अपने दोस्तों के पास जाया करते थे अथवा उनके दोस्त मेरे घर आते थे. अगर पिताजी बाहर गए होते थे तो हम सभी रेडियो घेर के बैठ जाया करते. पराकाष्ठा तब होती जब वे घर पर होते. तब माँ पहले से पड़ोस में रहने वाले जज की श्रीमती (जिन्हें हम मम्मी कह कर बुलाया करते) से तैयारी करवा लेती. समय से पांच मिनट पहले मम्मी की जोरदार आवाज़ आती , “ नीरजा की माँ ! थोड़ी देर के लिए आईये ! लगता है मुझे ज्यादा बुखार हो गया है.माँ , नाना से बहुत से होमेओपैथ इलाज़ सीख रखा था और इसके चलते वह चारों तरफ बहुत मानी जाती थीं.
एक दिन जब ऐसा हुआ और माँ, मम्मी के रेडियो पर प्रसारित अपनी कहानी सुन रही थी  तब पिताजी ने भी रेडियो चालू कर दिया. माँ की कहानी आ रही थी. दादी से लेकर हम सभी को काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई. पिताजी पहले तो कुछ अनमने से और बाद में पूरी तन्मयता से कहानी सुनने लगे. पूरे घर में सन्नाटा था . केवल रेडियो की आवाज़ लाउडस्पीकर से निकलती मालूम पड़ रही थी. तभी पिताजी ने दादी को कहा की रेडियो पर आती कहानी को गौर से सुने.
प्रसारण खत्म होने के कुछ १० मिनट बाद माँ लौटी. पिताजी ने दादी को कहा की जरा अपनी बहू  को बताओ क्या लाज़वाब कहानी आ रही थी रेडियो में . क्या ऐसी सुन्दर कहानी ये नहीं लिख सकती ?
संक्षेप में कहानी इस प्रकार थी. एक गरीब किसान की जमीन ज़मींदार हडप लेता है. कोर्ट-कचहरी से कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि उसकी औरत बिलखते बच्चे को छोड़ कर चल बसी. किसान ने ठान लिया की वह अपने बेटे को मजिस्ट्रेट बनाएगा और गरीबों को इन्साफ दिलाएगा. वह खुद भूखा रह जाता पर बेटे पर आंच नहीं आने देता. बेटे को आगे कि पढाई के लिए उसने उसका दाखिला शहर के स्कूल में करा दिया. खुद उसी शहर के दूर कोने के गाँव में एक स्कूल में दरबानी करने लग गया. वह क्या करता है , कैसे रहता है , इसकी ज़रा सी भी भनक बेटे पर नहीं होने दी. किसान को डर था कि अगर बेटे को उसकी माली हालत का पता चला तो वह पढाई छोड़ देगा. आख़िरकार लड़का मजिस्ट्रेट बन ही गया और उसकी नियुक्ति बगल के शहर में हो गयी. कुछ काम की जिम्मेदारी, कुछ नए रोब का मजा, और कुछ नासमझी, बेटे ने एक बार भी घर जाकर पिता की हालत का अंदाजा लगाने का ख्याल नहीं किया . एक साल बीत गए. चुनाव के दौरान  उसकी पोस्टिंग पेट्रोलिंग मजिस्ट्रेट की हुई . मजिस्ट्रेट की जीप दौरे के दरम्यान अपनी रफ़्तार से उसी स्कूल में अंदर आई जहाँ किसान दरबानी करता था. बाप ने बेटे को देख लिया. किसान उलटे पांव स्टेशन की और भागा. वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि उसके बेटे ने उसे ना देखा हो. अभी ट्रेन आने में दो घंटे की देर थी. तभी मजिस्ट्रेट की गाड़ी स्टेशन पहुँच गयी. बाप-बेटे के ममस्पर्शी मिलन की चर्चा आज भी लोग करते हैं.
तब तो नहीं पर कुछ दिनों बाद जब माँ ने हकीकत बताई तो पिताजी और माँ ने मिलकर एक कहानी लिखी अंतरिक्ष के उस पार” . वे कुछ दिन हम सभी के लिए आनंददायक था.
इसी रेडियो के द्वारा हमारा परिचय क्रिकेट से हुआ. या यों कहें कि इंग्लिश और क्रिकेट सीखने और समझने में रेडियो हमारी टीचर एवं कोच थी. क्रिकेट के खिलाडियों के अलावा एक और शख्शियत से हमारी जान-पहचान हुई. वह थे महाराजकुमार ऑफ विजयनगरम जिन्हें सभी उनके प्यारे नाम विज्जी से जानते थे. पिताजी को उनकी कमेंटरी बहुत अच्छी लगती थी. पर जब छोटे नवाब आफ पटौदी टेस्ट मैच में आने लगे तो वे कमेंटरी को बड़े नवाब के लिविंग रूम में ले जाते थे . मंसूर पटौदी के अब्बुजान से लेकर बेगम साहिबा की चाय परोसने की बारीकियों को बताते-बताते वे क्रिकेट कमेंटरी करना भूल जाते थे. कुछ १०-१५ मिनट बाद बताते," In the meanwhile Manjrekar and Sardesai have returned to the pavilion  and Nadkarni is on the crease. Am I correct, Berry?”
ये रेडियो हमलोगों के साथ १९७९ तक रहा. पूरे पच्चीस साल. ट्रांसिस्टर और इंटीग्रेटेड सर्किट ने बड़े प्यार से वाल्व रेडियो को कबाड़खाने का रास्ता दिखा दिया. अबतक उस रेडियो की रिसायिक्लिंग भी हो गयी होगी . पता नहीं कहीं वह मेरे सामने लैपटाप के अंदर तो नहीं छुपा है; मुझे देख मंद-मंद मुस्कुरा रहा है.

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