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Monday, February 11, 2013

मान गए अनारकली !


अच्छे दोस्त की एक पहचान ये भी है की आप कुछ भी अनाप-शनाप लिख दे, वह तारीफ़ ही करेगा. मैंने एक कंजूस मौलवी की कन्जूसियत की हद पर अपने दोस्त के फेसबुक में लिखा. फेसबुक भी क्या चीज़ है. दस सेकंड में "लाईक" दिखने लगा. जाहिर है उसने बिना पढ़े ही क्लिक किया था. तीसरे दिन बड़ी मुश्किल से उससे बात हुई. पूछने पर उसने तारीफ़ में यहाँ तक कह दिया कि मेरी लेखनी में के०पी०सक्सेना की खुशबू है. इंसान भी क्या चीज़ है. समझते देर नहीं लगी कि उसने मेरा मन रखने के लिए कह दिया है.पर हमलोग सब किसी न किसी बहलावे के कारण ही जीते रहते हैं. मैंने खुश होते पर झेंपते हुए पूछ ही लिया कि ऐसा उसे कैसे लगा. उसने कहा कि बस थोड़ी कमी है. जहां मैंने पान कि गिलौरी मुंह में दबाते लिखा था उसे सक्सेना घुसेड़ते हुए लिखते. मैं कभी सक्सेना जी का लिखा खोज-खोज कर पढता था. ऐसा लगता था कि वे जो देखते थे उसे हु-बहू कागज पर उतार देते थे.
मुझे घुसेड़ने शब्द पर एक वाकया याद आ रहा है जो मेरे बॉस शर्मा जी के साथ गुजरा था. बात तबकी है जब मैं ३० का और मेरे बॉस ४० के हुआ करते थे. उन्हें अपने मातहतों का दरबार लगा कर आपबीती सुनाने का काफी शौक था. उसमें वे अपनी बेवकूफी बताने में जरा सी भी कंजूसी नहीं करते थे. उनके निचले होंठ की दायीं तरफ एक कटने का निशान था बिल्कुल शत्रुघ्न सिन्हा जैसा. चूंकि बदन-काठी और तौर-तरीके से वे वैसे लतखोर नहीं लगते थे इसलिए एक दिन जब वे बेतकल्लुफ थे तो मैंने उस कटे निशान के बारे में पूछ ही लिया. शुरू हो जाने में उन्हें देर नहीं लगती थी, एक किक में बिल्कुल वेस्पा स्कूटर की तरह.
वाक्या उनके कालेज के दिनों का था. सिनेमा हॉल में बीना रॉय वाली अनारकली फिल्म लगी हुई थी.
जिसे देखो वही मुगलेआजम, सलीम या अनारकली बना कैम्पस में नजर आ रहा था. प्रोफेसर हाथ पीछे कर नापते पर भारी कदमो से चहल-कदमी करते दिख रहे थे. लड़के अचानक पैंट-शर्ट की जगह चूडीदार पहने दिख रहे थे. कालेज में लड़किया ऐसे भी बहुत कम थीं. जो थी वो या तो अनारकली की तरह शरमाई हुई पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदती दिख रही थी या लट बिखराए दीवारों के बीच चुनी जाती हुई महसूस कर रही थीं.
सबसे बुरा आलम शहर भर के गुलाब के पौंधो का था. सभी बिना फूल के विधवा लगते थे. गुलाब के झड़ने को तैयार फूल, जवान फूल और कलियाँ सभी कैम्पस के अंदर शोभा बढ़ा रहे थे. प्रोफेसर की पीठ के पीछे की हुई हथेलियों में दम तोडते, आकाश की ओर निगाहें किये हुए लडको के नाक के नीचे खुशबू बिखेरते और लड़कियों के बाल की सलवटो में अंगड़ाई लेते सभी तो गुलाब के फूल ही थे.
शर्मा जी का आय०क्यू० बचपन से ठीक-ठाक था. तुरत समझ गए ये सब कारस्तानी अनारकली फिल्म की है. देखना जरूरी हो गया. पर भीड़ का ये हाल कि कोई भूल-चूक होने की गुन्जायिश किसी को भी हाल के गेट के बाहर कर दे. दो दिन शर्मा जी मायूस लौट आये. तीसरी बार हनुमान चालीसा रटते-रटते फिर आजमाईश को निकले.
ग्रेजुएशन तक आते-आते उन्हें पान खाने की लत लग चुकी थी. पान की दुकान पर पंहुचे. पान वाले ने उनका घबड़ाया हुआ मायूस चेहरा देखकर समझा की शायद इस बार अचानक बेमौसम इम्तेहान शुरू हो गया है. पूछने पर मालूम हुआ की माजरा उतना मुश्किल नहीं था फिर भी शर्मा जी के लिए इम्तेहान से कम का नहीं था. कालेज के पढ़ाकुओं को गेट के बाहर पैर जमाये पानवालों और चाय की दुकान वाले भाईजी में फ्रेंड-फिलोसोफर-गाईड मिल ही जाता है नहीं तो मालूम नहीं ख़ुदकुशी करने वालो और पागलखाने में दाखिले का सालाना आंकड़ा क्या होता.
शम्भू पानवाले ने मुंह से पान के पीक बगल में पिचकारी मारते हुए तुरत हौसला दिया और कहा कि इन्तेजाम किये देते हैं. उसने शर्मा जी से उनका पेन और एक कागज माँगा. पेन तो मिल गया पर वहाँ हरे-भरे पत्तों के अलावा और कुछ भी नहीं था जिसपर टेंडर(हुक्मनामा) लिखा जा सके. लिहाजन, शम्भू ने शर्माजी की दाहिनी हथेली खींची और उसपर लिखा दिया,” शकूर मिया इन्हें घुसेड़ देना.बस इतना ही लिखा और कहा कि देखना क्या कमाल होता है.
शर्मा जी कहे मुताबिक़ १२ आने वाली सेकंड क्लास वाली गेट पर आ गए. शकूर मियाँ की खिजाब वाली बकरीनुमा दाढ़ी उनकी पहचान साबित कर रही थी. शर्मा जी ने हथेली शकूर मिया के आँखों के सामने कर दी. शकूर मिया ने पढ़ा. दुबारे गौर से पढ़ा और शर्मा जी को खींच कर बगल में खड़ा कर लिया.
तीसरी घंटी बज चुकी थी. लोग-बाग जिनको अंदर जाना था, जा चुके थे. जो बाहर रह गए थे वे ऐसे दौड़ कर अंदर घुस रहे थी जैसे ट्रेन छूट चुकी हो. तभी शकूर मिया ने अपने दाहिने हाथ से शर्मा जी का गला पीछे से भरपूर पकड़ा और बाएं हाथ से दरवाजा खोल उन्हें सही में अंदर जोर से घुसेड़ दिया.
अंदर घुप अँधेरा था. पहले तो सीढ़ियों ने धोखा दिया. गिरते-पड़ते शर्माजी की काया को कुर्सी  के हत्थे ने भरपूर संभालने की कोशिश की. पर होठ तो किसी और मकसद के लिए बनाया गया है. मुगलेआज़म के दरबार में जहाँ सलीम भी जलवाफरोश हों और अनारकली अपना जलवा बिखेरने वाली हो , वहाँ तो अदब से जाना था.

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