1980 का दशक मेरे कार्यकाल का सबसे रोमांचक दौर था । इस समय HEC ने रेलवे
के लिए ni-hard कास्टिंग्स और एस०जी० आयरन कास्टिंग भारत में पहली बार विकसित की ।
कास्ट आयरन, स्टील रोल और फोर्जे रोल में तो पहले से महारता हासिल थी । इसी समय
प्राइवेट सेक्टर के भी दिग्गज इन क्षेत्रों में जोर-आजमाईश कर रहे थे पर गंदे
तरीके से । वे तरह-तरह का लालच देकर हमारे होनहार इंजिनियर को ले जाते थे । इससे
एक तो उन्हें विकसित प्रणाली मिल जाती थी और दूसरे उसे कार्यान्वित करने वाला
इंजिनियर भी । हमारा पब्लिक सेक्टर कारखाना बेबस रह जाता था । फैक्ट्री बंद होने
के कगार पर आ गयी । उसी दौरान रूस(USSR) को अच्छी गुणवता वाले कास्ट आयरन, स्टील रोल और
फोर्जे रोल की सख्त आवश्यकता आन पड़ी । रूस को शायद दुःख भी होता होगा उनके
कोलैबोरेशन से बनाए कारखाने का यह हश्र देखकर । रूस के साथ एक बड़े एम०ओ०यू० पर
हस्ताक्षर हुए जिसके तहत रूस के विशेषज्ञों की देख-रेख में समय पर गुणवता वाले
रोल्स बनाये गए । हमारे कारखाने को कुछ अवधि के लिये काम मिल गया और शायद रूस को
सस्ते में सामान ।
इस बार रूस से 10 विशेषज्ञ इस काम को अंजाम देने आये । मेरी भूमिका एस०जी०आयरन कास्टिंग्स और रोल में तकनीकी कोआर्डिनेशन की थी । मिस्टर सोरोकिन 72 वर्ष के
140 किलो के भारी-भरकम लम्बे कद के हसमुख विशेषज्ञ थे जिनके साथ मुझे 1 वर्ष
लगातार् काम करना था । विचार-विमर्श में कोई परेशानी न आये इसके लिए दो
इन्टरप्रेटर भी आये थे । एक मैडम एलिज़ाबेथ थी(उम्र 55) जिनका नामकरण एलिज़ाबेथ टेलर
जैसा रूप-धारण और रख-रखाव के लिए हुआ होगा । दूसरे मिस्टर इवानोव(उम्र 50) थे । ये
हॉलीवुड के स्पाई थ्रिलर के नायक जैसा मिजाज रखते थे । मैडम डायरेक्टर मीटिंग में
हिस्सा लेती थी जब की इवानोव कार्यक्षेत्र में दुभाषिया की भूमिका निभाते थे ।
सोरोकिन अपनी ताकत से हमलोगों को शर्मिन्दा कर देते थे । भारी ट्राली को
धकेलना, पिघले लोहे की 10T भारी बाल्टी को अकेले रोल कर देना उनके लिए मुश्किल न
था । एक इंच मोटे लोहे के टेस्ट पीस को हथोड़े से दो टूक कर देना उनके लिए बहुत
आसान था । कार्य अवधि में इनलोगों में तनिक भी आलस या बेपरवाही नहीं झलकती थी ।
हमलोगों ने समय अवधि के अंदर आर्डर पूरा किया ।
सोरोकिन की विदाई का समय भी आ गया । उन्होंने मुझे और मेरे तकनीकी सहयोगी
प्रदीप गुहा ठाकुरता को पत्नी सहित अपने हॉस्टल सुइट में डिनर पर आमंत्रित किया ।
डिनर टेबल पर एलिज़ाबेथ और इवानोव भी थे । हरी मिर्च से बने सुर्ख हरे रंग के वोडका
से शुरुआत की गयी । उस समय तक मैंने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया था । उस दिन भी नहीं जिसके चलते मेरी बहुत हंसाई
हुई पर किसी ने भी जोर जबरदस्ती नहीं की । खाने पर ताज़े ब्रेड के साथ बीफ, पोर्क, सार्डीन
फिश और किसी मवेशी का दो इच लम्बे जीभ का रोस्ट था । हमलोगों से कुछ भी नहीं खाया
गया सिवाय ब्रेड के और अंत में डेजर्ट और केक । लौटते समय सोरोकिन की पत्नी
ने मुझे एल्बम और श्रीमती को मेकअप पैक दिया ।
अगले वीक-एंड हमलोगों ने सोरोकिन और इवानोव को ठाकुरता के घर पर फेयरवेल डिनर
पर आमंत्रित किया । ठाकुरता का फ्लैट हॉस्टल कैंपस से सटा हुआ था । खाने पर
हमलोगों ने देशी तरीके से बना मटन, फिश और बिरयानी खिलाई । साथ में व्हिस्की भी थी
जो उन दोनों ने पी और ठाकुरता ने शिष्टाचार के नाते जितनी पी उसी से उसको नशा हो
गया । सोरोकिन पीते जाते थे और साथ में मुझे खबरदार करते जाते थे की चुकि मैं पूरे
होशो-हवास में हू तो मुझे ही उन्हें एक फरलोंग दूर घर तक पहुचाना होगा । विदायी के वक्त हमलोगों ने सोरोकिन और इवानोव
को हवाना सिगार और रजनी गंधा पान मसाला भेंट किया । सोरोकिन की श्रीमती को कांच की
चूड़ियों का सेट और माथे के टीके का पैकेट भेंट किया गया । उनकी श्रीमती की ख़ुशी
देखते बनती थी । उन्होंने मेरी श्रीमती की सहायता से उसी वक्त चूड़ियाँ पहनी और सुर्ख
लाल बंगाली टीका अपने ललाट पर लगवाया । सच में वह बहुत सुन्दर लग रही थीं । इवानोव
ने उनके काफी सारे फोटो लिए । सोरोकिन को पूरे रास्ते दोनों तरफ से कन्धों का
सहारा देकर घर तक पहुंचाया गया ।