On the streets, unrequited love and death go together almost as often as in Shakespeare.
Scott Turow
पटना स्टेशन से दो किलोमीटर
पूर्व ये कदम कुआँ मोहल्ले की अग्रणी सड़क थी. इस सडक में कदम रखने के पहले चौरस्ते
के उत्तर में बाकरगंज और दक्षिण में लोहानीपुर इलाका था. ये ४०० मीटर की सडक के
अंत में मशहूर कांग्रेस मैदान था. जिसके बाद खादी ग्रामोद्योग का विस्तार और उसके
बाद भारत के पहले राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रसाद के दो बेटों का सटा हुआ विशाल
घर था. कुछ आगे बढ़ने पर स्वर्गीय जय प्रकाश नारायण का घर और सर्वोदय आश्रम था. ये
सड़क बिहार स्वंतंत्रता सेनानी और पहले उप मुख्य मंत्री दिवंगत श्री अनुग्रह नारायण सिंह
के नाम पर रखा गया था जिनका जुड़वा घर सड़क के अंत में दाहिनी तरफ था. पूरी सड़क
मशहूर लोगों से शोभित थी.
Scott Turow
वह चौरास्ता, जिसकी पूरब की
और जाने वाली सड़क का मैं जिक्र कर रहा हूँ, भी काफी मशहूर था. पिंटू होटल का
रसगुल्ला, भगवती का लेमोनेड, चाय और उसकी बिना छत वाली दूकान में गजेड़िओं की
जमात,, रघुनी की सब्जियां, सीताराम की राशन की दूकान , किशोरी की पान व् भांग की
गुमटी, और मन्नुलाल हलवाई की जलेबी और कचौरियां भला भुलाए भूल सकती है ? सिर्फ दो
आने(१२ पैसे) में चार जलेबियां, चार सादी कचौरियां जिसके साथ जायकेदार सब्जी और
कद्दू का रायता मिलता था
सड़क में कदम रखते ही बाईं तरफ
लड्डू बाबु वकील का विशाल लाल घर था जहाँ उनकी डरावनी माँ हर वक्त ऊपर की खिड़की से झांकती मिलती थी .एक बार एक लड़के ने उस घर के अंदर जाकर
फूल तोड़ने की हिम्मत की थी. उस महिला ने पानी पटाने वाले झरने को फेंककर उसे मारा
था. उस लड़के की कोहनी लहू-लुहान हो गयी थी. उसके बाद पाटलिपुत्र हाई स्कूल के
लड़कों ने घुसकर बहुत तोड़-फोड मचाया था. पुलिस नहीं आती तो मालूम नहीं क्या होता.
थोडा आगे बढ़ने पर दाहिनी तरफ
का दूसरा मकान श्री लाल नारायण
सिन्हा का था. वे बाद में भारत के सोलिसिटर जेनेरल हुए और उनका लड़का विजय १९५८-५९
में मुझसे ५ साल बड़े रहें होंगे. दीवाली में , वे बन्दूक की नाल पर आसमान तारा (
रॉकेट) रखकर बुल्लेट दागते थे .आसमान तारा
आसमान से बातें करता , रंग बिखेरता था.
उनसे सटा घर खान बहादुर असगर
अली खान का था. विशाल मुगलिया शैली में बनी तीन मंजिला हवेली में वे और उनके
रिश्तेदार ५ परिवार रहते थे. उनके घर मुर्गा पाला और खाया जाता था इसलिए हम बच्चों
का वहा जाना मना था. ये हवेली ठीक हमलोगों घर के सामने थी जिसमे हमलोग किरायेदार
थे . उस घर का एक लड़का आबिद मेरे साथ पढ़ता था. कंचा गोली, लट्टू, पिट्टो और खासकर
पतंग बहुत अच्छी उडाता था. अब भला मेरा आना-जाना कैसे रुकता. बकरीद में बकायदे
उनके घर से बकरे का गोश्त आता पेड़ के पत्तों में लिपटा कर जिसे मेरी दादी थोड़ी देर
बाद हमलोगों के चपरासी इब्राहीम को दे देती.
उनलोगों ने कभी मुझे कुछ भी खिलाने-पिलाने की कोशिश नहीं की. हाँ, आबिद के
चचाजान मुझसे मजाक जरूर किया करते. कहते परकाश क्या तुम डीम (अंडा) खाओगे या कहते
की शामी कवाब बहुत अच्छा बना है थोड़ा चखोगे ? एक दिन उनके घर भयंकर चोरी हुई. खोजी
कुत्तों को बुलाया गया था पर कुछ सुराग नहीं मिला. उसके बाद बहुत से खासकर पीछे के
दरवाजों को बड़ी-बड़ी कील ठोक कर बंद कर दिया गया. हम बच्चो को इससे ये परेशानी हुई
की अब हमलोगों को हलके पाँव सामने के
दरवाजे से ही ऊपर छत पर पतंग उड़ाने जाना पड़ता. १९५८ में वे सभी पूर्वी पाकिस्तान (जो
अब बंगलादेश है) चले गये. आबिद कहता था की वहाँ उनलोगों की बहुत बड़ी हवेली है और
बहुत जमीन है.
उसी घर के जमीनी तल्ले के
आगे के हिस्से में जन संपर्क विभाग का राज्य सूचना केन्द्र खुला था. मैं वहाँ तरह-तरह की साप्ताहिक, मासिक हिंदी व् अंग्रेजी पत्रिकाएं पढ़ने हर रोज शाम को जरूर
जाता था. दैनिक हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में क्रिकेट से सम्बंधित खबरे बड़े चाव
से पढ़ता था. एक शाम वहाँ मशहूर रंगमंच और फिल्म के कलाकार पृथ्वी राज कपूर अपने दल
के साथ आये थे. उन्होंने भाषण दिया था जिसमे ज्यादा तारीफ उनके बड़े लड़के राज कपूर
की थी जो उस समय तक अपनी फिल्म “आवारा” के कारण रूस तक में लोकप्रिय हो गया था.
बाद में उन्होंने एक नाटक का मंचन किया और कुछ गाने गाये. केन्द्र ने सभी
क्रियाकलापों की टेप रिकॉर्डर से रिकॉर्डिंग कर सभी को सुनाया जो हमलोगों के लिए
एक नया अनुभव था. केंद्र प्रत्येक शुक्रवार को १६ मिलीमीटर प्रोजेक्टर से समाचार
और कभी-कभी फिल्म दिखाया करता. “हमलोग” और “जलदीप” कई बार दिखाया गया जिसके कारण मुझे भी एक-दो
बार देखने का अवसर मिला. “हमलोग” देवानंद
की पहली फिल्म थी. शाम के बाद की गतिविधि पिताजी के घर से बाहर गए रहने पर ही सक्रीय होती
थी.
मेरे घर के बाएं जज मदन मोहन
प्रसाद रहा करते थे जिनका लड़का क्षितीज( मुन्ना) मुझसे तीन क्लास ऊपर मेट्रिक में
था. हमलोग उनकी मम्मी को मम्मी कहकर ही बुलाया करते थे. एक बार, एक मेहतरानी का ५ साल
का लड़का चारदीवारी से झाँकते गुलाब के फूल को तोड़ते हुए जज के हाथों पकड़ा गया. जज
ने उस लड़के को एक जोरदार चांटा मारा. लड़के ने छूटते ही माँ-बहन की गाली दे डाली.
उसके बाद तो रोते हुए बच्चे के मुंह से गालियों की बौछार और जज के चप्पल की गूँज
से भीड़ जमा होने लगी. लड़के की माँ जज को छू नहीं सकती थी इसलिए वह भी चिल्ला-चिल्ला
कर जज को मारने से रोक रही थी. तभी मेरे घर के पिछले हिस्से में रहने वाले शीतल
चाचा जिन्हें हम सभी छोटे-बड़े आदर से गांधीजी कहकर बुलाते थी वहाँ आ गए . उन्होंने
जज साहब को समझाया कि उस लड़के को अपना संस्कार सुधारने में समय लगेगा पर आप तो
समझदार और विद्दवान हैं. उन्होंने जज का हाथ पकड़ कर करीब-करीब घसीटते हुए वहाँ से
हटा दिया. वह समय सर्विस लेट्रिन का था. सब मैला कमाने वाले धीरे-धीरे जज के घर के
सामने जामा होने लगे. अंदेशा था की वे लोग मैले से भरी बाल्टियाँ जज के घर पर
फेंकेंगे. मेरे पिताजी (जो उस समय पटना मुनिसिपल कोरपोरेशन के वरिष्ठ अधिकारी थे)
के मध्यस्थता पर मामला शांत हुआ. तब भी दूसरे दिन
तडके जज साहब के गेट के अंदर किसी ने दो बाल्टी मैला उलीच ही दिया था.
मेरे घर के पीछे के हिस्से
में पहले से एक कमरे में 70 वर्षीय शीतल प्रसाद सिंह ( गाँधीजी ) रहा करते थे. उनका
पोता कामेश्वर मेरे साथ पढ़ता था. सुबह पांच बजे जब कभी मैं जल्दी उठ जाता तो
कामेश्वर को जाड़े की कपकपाती ठण्ड में भी नहाकर मात्र एक पतला गमछा लपेट कर चौकी
पर खड़े होकर पूर्व की तरफ हाथ जोड़े गायत्री मन्त्र का पाठ पढते पाता. जब परीक्षाफल
निकला और मै पास हो गया तो मेरे घर सब बहुत खुश थे. शाम को जब खेल के घर लौटा तो
देखा की कामेश्वर अपने बाबा के हाथों पिट रहा था . मालूम हुआ उसे हिसाब में 100
में 96 अंक मिले हैं. मुझे मात्र ४१ मिले थे. गांधीजी केवल शाम को जलती लकड़ी पर मोटी
रोटियां और अरहर की गाढ़ी दाल बनाते. दाल में नमक नहीं डालते क्योंकि उन्हें गंभीर
हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत थी. हम सभी बच्चे हर शाम उनसे आधी-आधी रोटी और उसपर एक
चम्मच दाल की अपेक्षा रखते. बहुत बाद में 1988 में जिस 20000 कामगारों वाले कारखाने में मै उस समय मैनेजर था वहीं कामेश्वर
किसी कोने में टाइम कीपर क्लर्क था. बचपन में जिसे भगवान श्री राम की भूमिका मिलती
थी आज वही बुरे व्यसन से लिप्त था.
सबसे जानदार घर मेरे घर से
बायीं तरफ तीसरा, मशहूर वकील श्री अवधेश
नंदन सहाय का हुआ करता था. 15-20 कमरों वाले घर में उनके बड़े भाई, तीन बेटे और
एक बेटी पूरे परिवार के साथ रहते थे. कम से कम 35-40 जन रहते होंगे. उनकी खाँसने
की आवाज़ 150 मीटर दूर मेरे घर तक आती थी. बहुत बाद में जब मैंने फिल्म कलाकार हरिन्द्र नाथ
चट्टोपाध्याय को देखा तो एकदम लगा की उनकी शक्ल वकील नाना से मिलती है. उनका नाती
और मेरा दोस्त बसंत मेरी क्लास में पढ़ता
था. कहा जाता था की आसाम से जब किसी केस को जीत कर आये थे तब दो बड़े बक्से में
नोटों का बंडल भरकर साथ लाए थे. उस समय का सबसे दामी सिगरेट मैक्रोपोलो पर उनका
नाम प्रिंटेड रहता था. वे चेन स्मोकर थे. उनका बेटा रमेश बिहार बैडमिंटन का चैम्पियन
था. बसंत की नानी जिनका नाम श्रीमती सावित्री देवी था, जयप्रकाश नारायण के बहुचर्चित और बिनोवा भावे द्वारा गठित
सर्वोदय आश्रम की संचालिका थीं. जयप्रकाश जी जब भी पटना आते तो वे सहाय साहब के घर
ही ठहरते. एक बार जब जयप्रकाश जी का काफिला आया था तब इनके घर मुर्गों की
चीख-पुकार से माहोल गरमा गया था.
इनके घर एक बार बहुत रोने की
आवाज़ आई. मालूम हुआ की उनके बड़े भाई का देहांत हो गया है. उनके तीन लड़के हरीश,
सत्येन्द्र और वीरेंद्र क्रमशः अजय भैया , मेरे व् मेरे छोटे भाई मनोज के साथ पढते
थे. कुछ दिनों बाद तीनों लड़के न तो खेल के मैदान में दीखते और न तो स्कूल में.
सहाय साहब ने अपने बड़े भाई के परिवार को अपने घर से हटा दिया था. कुछ दिनों के
बाद, जब एक दिन मेरे घर की नौकरानी नहीं आई तो माँ ने मुझे उसके घर जानकारी लेने
को भेजा. उसी नौकरानी की गली में मुझे सत्येन्द्र दिखा. रोकर उसने बताया की वह उसी
गली में एक झोपड़ी में रहता है. पढ़ना तो दूर खाने के लिए घर में कुछ भी नहीं था और
बनिए ने भी उधार देना बंद कर दिया था. मैंने ये सब बातें घर लौटकर माँ को बतायीं.
उस दिन से समय-समय पर जो बन पड़ता उतना चावल और दाल माँ हमलोगों के हाथ या
नौकरानी के द्वारा भेजती रहती थी. कुछ महीनों बाद पिताजी का तबादला झुमरी तिलैया
हो गया. १९७८ में हरीश रांची से ४० किलोमीटर दूर एक कार गैरेज में काम करता मिला.
उससे मालूम हुआ की रांची में ही सत्येन्द्र सिनेमा के टिकेट ब्लैक में बेचते समय छुरे से मार
डाला गया.
सहाय साहब के बाएं अलंकार
ज्वेलर्स का घर था जिनकी अब भारत में कईं
जगह आउटलेट्स हैं. सामने तत्कालीन एडवोकेट जेनेरल श्री महावीर प्रसाद रहते थे.
हमलोगों का मोहल्ले का रिंग लीडर गौरीशंकर का विशाल घर उनसे सटा हुआ था. एक सुबह
हमारी सड़क पर घोड़ागाड़ी ( विक्टोरिया) आई. घोड़े की टाप हम सभी भाइयों को गेट के बाहर
ले आई. वह विक्टोरिया गौरी के घर के अंदर चली गयी. कुछ देर बाद जब वह लौटी तो साईस
की बगल में गौरी कि बूढी दादी बैठी थीं और पीछे हूड पर सफेद कपडे में आदमकद कुछ
लिपटा पड़ा था. सभी लोग सड़क पर निकल कर उस विक्टोरिया को सहमे हुए देख रहे थे. उस
दिन मुझे एक ट्रेजिक लव स्टोरी के बारे में मालूम हुआ. गौरी के सबसे छोटे चाचा
विलायत से एम्०एस० पास करके जब लौटे तो उन्हें मालूम हुआ कि महावीर प्रसाद की लड़की
की उनसे छिपाकर शादी कर दी गयी है. उन्होंने रात को जहर खा लिया था. घर में कोई
सयाना नहीं था इसलिए दादी ही लाश को पोस्टमोर्टेम के लिए ले जा रही थीं.
उस शादी का ज़िक्र हमलोग करते
रहते थे क्योंकि शादी बड़ी धूमधाम से की गयी थी. बरात के आगे सजे हाथी, बारात के
आगे और पीछे पटना का सबसे मशहूर मिलिटरी बैंड और मूसा बैंड. हवाई जहाज से फूलों की
बरसात. आतिशबाजी जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी.
सबसे यादगार बारातें डा०
राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियों की दिखी थी. करीब
आधा मील लंबी बारात जिसमे पांच हाथी आगे और उनके बीच में तीन ऊँट . तीन-तीन बैंड
जिसमे तीसरा पंजाब बैंड था. राष्ट्रपति का काफिला जिसे ऊंचे-ऊंचे घोड़े सजे हुए
सवारों के साथ लंबी शेवरलेट गाडी को घेरे झंडों को हाथ में लिए चल रहे थे. राष्ट्रपति
स्वयं बारात की आगवानी हमारी सड़क के एंट्री पॉइंट से कर रहे थे.
एक और शादी का ज़िक्र मैं
करूँगा. आबिद के घर के बाएं बगल का घर हमेशा खाली ही रहता था. निगरानी के लिए एक
गोविन्द नाम का नौकर रख छोड़ा था. उस घर में अमरुद के पेड़ थे इसलिए हमलोगों ने
गोविन्द से दोस्ती गाँठ ली थी. वह बंगाली था और जब कभी मूड में होता था तो बहुत
अच्छे-अच्छे चुटकले, कहानियां और जानवरों की आवाजें सुनाता था. वह बाउल गीत(बंगाल का लोकप्रिय लोकगीत) भी बहुत सुरीली आवाज़ में गाता था. एक दिन दोपहर को उस
घर के पिछवाड़े बहुत हंगामा होने लगा. हमलोगों को लगा कि बच्चों का कोई बाहरी झुण्ड
अमरुद तोड़ते पकड़ाया है. जब हमलोग पिछवाड़े पंहुचे तो देखा के गोविन्द को बहुत से
औरत-मर्द घेर कर बहस कर रहे हैं. ज्यादातर लोग गन्दी गालिया दे रहे थे और गोविन्द
के साथ धक्का-मुक्की कर रहे थे. भीड़ डोमों की थी. बीडी पीने की बहुत बुरी गंध आ रही
थी. तभी एक काली पर बहुत सुंदर लड़की बीडी पीते हुए पिछवाड़े के दरवाजे से बाहर
निकली. उसके दांत चोकोलेटी काले. वह तीन दिनों से घर से भागकर गोविन्द के साथ रह
रही थी. बड़े जनों ने हम बच्चों को वहाँ से भगा दिया. देर रात तक उस घर से
हँसने-गाने की आवाज़ आती रही. सुबह मालूम हुआ. दोनों की शादी कर दी गयी थी.
लिखने और बताने को तो और भी बहुत कुछ है. पर सुनने और पढ़ने वाले को आज के टाइम
मैनेजमेंट में समय कहाँ है. अंत में मैं कांग्रेस मैदान का जिक्र इसलिए करूँगा क्योंकि
वहाँ शाम को संघ के राजेंद्र सिंह जी आते थे और एक घंटे खेलते-खिलाते थे. संस्कृत
का श्लोक याद कराया जाता . अन्ताक्षणी और
रूमाल-चोर जैसे रोचक खेल उन्होंने ही सिखाए. उनके ओजपूर्ण व्यक्तित्व से मैं बहुत
प्रभावित हुआ था.
No comments:
Post a Comment