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Friday, May 18, 2012

जंगल 2


पिताजी एक कर्मठ और ईमानदार ऑफिसर ही नहीं थे ,उन्हें अपने कर्तव्य के पालन का ज्ञान भी था और आवश्यकता पड़ने पर उनकी बहादुरी उनका साथ देती थी. इंस्पेक्टर ऑफ़ माइका एकाउंट्स की हसियत से उनपर चोरबाजारी और अवैध माइनिंग व् व्यापार पर भी नकेल कसनी होती थी. उस समय करोड़ों (आज के समय का अरबों) का अवैध व्यापर होता था जिसमें मिनिस्टर तक सलग्न रहते थे.
एक दिन अचानक पांच बजे शाम को पिताजी ऑफिस से आते ही मुझे(१२) व् मनोज(१०) को तैयार हो जाने को कहा. वे इस तरह के टूर पर हम बच्चो को भी साथ ले जाते. इस तरह उन्हें हमलोगों को शिक्षित करने का सुअवसर मिल जाता. माँ से उन्होंने अपने लिए रोटी-सब्जी और हमदोनो, चपरासी व् ड्राईवर के लिए पराठे बनवाये. फोन कर ड्राईवर को जीप लेकर आने को कहा और आनन्-फानन इंस्पेक्शन के लिए रवाना हो गए. पिताजी जीप खुद चला रहे थे. जब जीप डैबौर डाक बंगलो पहुंची तब ड्राईवर और चपरासी को पिताजी के इरादे पर शक हुआ. पिताजी के लिखित आदेश के बावजूद माइका माफिया का अवैध खनन (माइनिंग) का काम चल रहा था. पर एक तो रात दूसरे जंगल का डर , अगर उन दोनों में से कोई भी खबरी था तो उसकी हिम्मत नहीं पड़ी.
हमलोगों ने खाना खाया और पिछवाड़े की दालान पर बिछी चौकी पर बैठ गए. चपरासी ने कहा था कि पिछवाड़े शेर और दूसरे जंगली जानवर आते है. दालान पूरी तरह ऊंचे तार के बाड़े से सुरक्षित था. एक-दो बार चपरासी हमदोनो को सोने के लिए कमरे में लिवा जाने के लिए आया भी पर हमदोनो ने कहा कि थोड़ी देर बाद हमलोग खुद आ जायेंगे. सियारों की आवाज़ तो रह-रह कर आ ही रही थीं, अब शेरों की दहाड़ गूंजने लगी थी. कभी-कभी जंगल में रौशनी की तरह जलती हुई आँखे दिखाई पड़तीं और पर हमलोग तय नहीं कर पाए कि कौन सा जानवर है. हमदोनो उसी चौकी पर कब सो गए पता ही नहीं चला. सुबह जब चपरासी हमदोनों को जगाने आया तो हमलोगों का आइसक्रीम बन चुका था. वैसी ठण्ड से फिर कभी सामना नहीं हुआ. सूर्योदय के पहले हमलोग अवैध खनन वाले खान पर पहुँच चुके थे . आधे घंटे बाद एक लिखित कागज को पिताजी ने पढ़ कर वहाँ मौजूद मुंशी को सुनाया , उसके दस्तखत लिए और जीप पर रवाना हो गए .
जब हमलोगों की जीप हाई वे के पास पहुंची तो मैंने पिताजी को बाँध के बारे में याद दिलाया . पिताजी ने जीप दाहिने मोड दी. बाँध पहुँचने  में आधा घंटा लगा. बाँध शायद शिवसागर बाँध था.वहाँ हमलोगों ने पन्द्रह मिनट बिताए.  उसके बाद एक ढाबे पर हमलोगों ने बिस्कुट और चाय ली. पिताजी को मैंने कभी भी खान मालिकों का खाना या नाश्ता स्वीकार करते नहीं देखा. बहुत आग्रह करने पर चाय पी लेते थे .
हमलोगों की जीप जैसे ही घाटी से उतर कर समतल सड़क पर आई, एक बड़ा हादसा देखने को मिला. जीप को किसी ट्रक ने बड़ी जोर का धक्का मारा था. जीप में सवार दोनों आदमिओं की घटनास्थल पर मौत हो गयी थी. पिताजी ने पास के थाने पर खबर की. उसके बाद घर पहुंचते १० बज गए. पिताजी हमलोगों को उतार कर वापिस ऑफिस चले गए.
पिताजी की रिपोर्ट पर उन्हें मंत्री ने पटना बुलाया . पिताजी जब लौट कर आये तो उनके हाथ में तबादले का आर्डर था.
अभ्रख व्यापार में बहुत पैसा था. इंस्पेक्टर काला धन बटोरते और ऊपर के लोगों को उनका हिस्सा पहुंचाते. पिताजी ये सब नहीं करते थे. साथ ही जब भी कोई बड़ा ऑफिसर या मंत्री आता तो उनकी खातिर भी उनलोगों के मन लायक नहीं करते . पटना सेक्रेटेरियट में बैठे इंडस्ट्री/माइन के सेक्रेटरी ने बड़ी इज्ज़त से तबादले का आर्डर थमाया .उन्होंने कहा की ये जगह उनके लायक नहीं थी और नयी जगह पर उन्हें १०० रुपये डेपुटेशन और ७५ रुपये प्रोजेक्ट भत्ते के रूप में अलग से मिलेंगे . गुड बाय कहते समय सेक्रेटरी ने यह भी कहा कि उस हादसे वाली जीप में आपको होना था पर आपने पहुँचने में देर कर दी.
पिताजी ने उसी महीने फरवरी में ही रांची के हैवी इंजीनियरिंग कारपोरशन ज्वाइन कर लिया. परिवार, घर मिलने के बाद अप्रैल में रांची आया.




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